Saturday 18 May 2013

रीत

दरवाज़ा खोल कर जैसे ही अखबार उठाना चाहा शैलजा पर नज़र पड़ी जो सीडियां उतर रही थी , मैंने नज़रंदाज़ किया लेकिन उसने एक मुस्कान उछाल दी में  अवाक थी क्या हुआ है उसे ? आज चार साल से मुह फेर कर निकल जाने वाली शैलजा उसे देख मुस्करा रही थी लेकिन मेरे  पास समय नहीं था जल्दी से अखबार उठाया और चाय गर्म करने लगी उसे देर हो रही थी सोचने के लिए बिलकुल समय नहीं था पर विचार कहाँ साथ छोड़ते हैं  !!!
तैयार हो कर बस स्टेंड पर आई तो शैलजा फिर से मिल गयी .
"दीदी आपने ज्वाइन कर लिया क्या ?"
'हाँ' 
'कहाँ '?
'वहीँ पुराने स्कूल '
अरे बड़ा अच्छा किया आपने ,समय कट जाता है अच्छा आपके यहाँ कोइ वेकेंसी हो तो बताना उसकी बस आ गयी और वो चली गयी 
अच्छा तो ये चक्कर था !!! उसे हंसी आई दुनिया कितनी मतलबी है ! अगर शिअल्जा जैसा व्यवहार में किसी के साथ करती तो  हिम्मत भी नही कर पाती बात करने की !
ओटो मिल गया तो में  भी अपनी राह चल दी रास्ते भर शैलजा की बातें  दिमाग से निकल नही सकी .
जब वो बिहार के छोटे से गाँव से ब्याह कर आई थी तो सीधी-सादी थी ग्रेजुएशन किया था उसने लेकिन आत्मविश्वास की बड़ी कमी थी |
अक्सर उसके पास आ जाती उसका पति एक होटल में जूनियर शैफ था | में जैसे ही स्कूल से आती कुछ देर बाद शैलजा आ जाती और इधर-उधर की बातों के साथ अपनी जॉब के लिए भी बात करती में उसका दिल नही तोड़ना चाहती थी पर जानती थी उसे व्यक्तिगत रूप से बहुत बदलाव की आवशयकता है|
समय बीतता रहा उसने कोइ कम्पूटर कोर्स ज्वाइन कर लिया और एनटीटी भी  कर ली अब उसका आत्मविश्वास भी बहुत बढ़ गया था फिर एक दिन मेरे पास एप्लीकेशन लिखवाने आई तो में उसमें बदलाव देख खुश हो गयी उसे कई एप्लीकेशन लिख कर दी काफी कुछ समझाया कई स्कूल के नाम बताये और कहा अपने आप जाकर बात करोगी तो तुम एक गज़ब के आत्मविश्वास से भर जाओगी| काफी दिन की मेहनत-मशक्कत के बाद उसे एक जॉब मिल गया उसने आकर मेरा शुक्रिया किया तो मैंने कहा नही ये तुम्हारी मेहनत का फल है बस अब आगे ही बढती रहना , धीरे-धीरे वो भी व्यस्त हो गयी और में भी |हमारा मिलना -जुलना कम हो गया कभी मिलते तो हाय -हेलो बस , मुझे लगा उसमें जो बदलाव आ रहा है वो कुछ ठीक नही धीरे-धीरे बड़े शहर की हवा लग रही थी उसे लेकिन मैंने ज़्यादा ध्यान नही दिया और में कर भी नही सकती थी कुछ | कभी मुझे लगता में तो उसे छोटी बहन की तरह मानती हूँ पर वो मुझमे अपना प्रतियोगी देख रही है और ये उसकी बात-बात में झलकता था पर में चुप रहती सोचती मेरा वहम है शायद | और वो जो चाहे सोचे में तो जो हूँ ,हूँ में तो उसके लिए अच्छा ही सोचती हूँ ,एक दिन मुझे सीढ़ियों पर मिली तो बराबर से ऐसे निकल गयी जैसे जानती ही नहीं ! मुझे आश्चर्य हुआ सोचा जल्दी में होगी सासू माँ से पता चला प्रमोशन हुआ है सेलरी बढ़ गयी है जो बढ़ कर भी मुझसे कहीं कम ही थी लेकिन मुझे आश्चर्य और गुस्सा दोनों थे उस पर |
इतना अभिमान !!!! अब वो अक्सर सामने से निकल जाती और देखती भी नही थी तो मुझे लगा ठीक है में ही क्यों उसकी चिंता करूँ ?
खैर मैंने भी उस से ज़्यादा मतलब रखना छोड़ दिया इसी बीच मुझे व्यक्तिगत कारणों से स्कूल छोड़ना पडा में घर पर ही रहने लगी अब तो शैलजा को लगने लगा कि में दुनिया की सबसे बेकार और वो सबसे काबिल महिला है उसने मुझसे बिलकुल बात करना बिलकुल ही छोड़ दिया हाय -हेलो भी नदारद हो गए 
.में अक्सर सोचती कैसे लोग हैं दुनिया में ?तभी शैलजा के ससुर बीमार हुए और उसे भी स्कूल छोड़ना पडा मैंने उनकी बीमारी में शैलजा के नाते नही लेकिन अपना पडोसी धर्म निभाया शैलजा को उपेक्षित कर के |उनके ठीक होने पर कुछ दिन बाद उसने ज्वाइन तो किया लेकिन ना वो पद मिला और ना ही पुराना वेतन | अब वो बहुत दुखी थी , इस बीच मैंने अपना पुराना स्कूल ज्वाइन किया कुछ दिन शायद उसे पता नही चला और जब पता चला तो आज उसने मेरी ओर अपना पहला कदम बढाया था |
मेरा स्कूल आ गया था उसके विचारों  में इस कदर खो गयी कि रास्ता कैसे कट गया पता ही नही चला बात |
अब में महसूस करने लगी थी कि शैलजा के कदम मेरी और बढ़ रहे हैं लेकिन मुझे अब वो ज़रा भी पसंद नही आती मैंने उसे उपेक्षित करना शुरू कर दिया है लेकिन उसका प्रयास जारी है  मेरी ओर बढ़ने का ,में तो बस हैरान हूँ लोग कैसे मतलबी और स्वार्थी होते हैं ??क्या उनके पास अंतर्मन नही होता जिसमें झाँक अपने कर्मों का लेखा-जोखा कर सके .?
फिर सोचा यही रीत है दुनिया की|