Saturday 25 May 2013

मेरा गाँव














.एक चौपाल ,असंख्य पेड़ों की छांव, लहलहाते खेत

यही था मेरा गाँव ..

घर -घर में मिटटी और गोबर की लिपाई-पुताई ,

वाह !! क्या साफ़- सफाई

कहीं कोई दादी ,चाची और ताई , न कोई बनावट और न झूठा आवरण

सिर्फ अपनापन और सच्चाई

औपचारिकता के दायरे से बाहर रिश्तों का आभास

गुड और साथ में मट्ठे का गिलास

प्यार के साथ-साथ ,खाने में भी सबका भाग

चूल्हे की सौंधी रोटी और प्यार के तडके का साग

आह !!! शहर की पक्की सड़क पर खो गया

वो प्यार और अपनापन ,

खाने की मिठास और मिटटी का सौंधापन

औपचरिक लिबास पहन , पकड़ ली शहर की राह

गाँव के प्यार और अपने पन की अब भी कहीं उठती है चाह ....

गाँव के प्यार और अपने पन की अब भी कहीं उठती है चाह ........