नन्ही -नन्ही बूंदों ने जब अपना राग सुनाया
व्याकुल किसान की व्याकुलता को ,हुलसाया -हर्षाया !
हल--बैलों की जुगल बंदी संग, धरती ने ली तान
झम -झमा झम , झम--झम ,झम--झम बरखा गाये गान !
हल चलाते कृषक अधरों पर ,खेल रही मुस्कान
भूल गया वो ताप , पसीना , सूरज का अभिमान !
लहलहाती फसल करेगी जब ,अभिनन्दन ,सम्मान
बीज -धरा का मिलन रखेगा ,परिश्रमी किसान का मान .