Tuesday 31 December 2013

२०१४ के लिए हार्दिक शुभकामनायें ......

२०१३ का अंतिम दिन ....ग्रेगोरियन कैलेंडर का २०१३ बीता और एक कदम आगे बढ़ आये ....
 अपने बीते समय का लेखा-जोखा ले ,२०१४ के प्रवेश द्वार पर खड़े हैं .......
........मुड़ कर देखते हैं तो बहुत कुछ है .....
.......कुछ है समेट ले जाए , बहुत कुछ है छोड़ आगे बढ़ जाएँ ....
............ खट्टे-मीठे पल छोड़ चले पग चिन्ह ....
आने वाला ---
हर पल खुशियाँ समेट लाये ............ संघर्ष , सफलता बन जाए
........आँखों में झिलमिलाते साकार हो स्वप्न.....
२०१४ का सूर्य एक नया सवेरा ले सबके जीवन में स्वर्णिम प्रकाश ले आये ..........
.....प्यार , स्नेह का ध्वज फहराए .........द्वेष ,ईर्ष्या यहीं रह जाए .........
बस यही चाह , यही कामना ....
कुछ अच्छा और नया करंगे इसी संकल्प के साथ आगे कदम बढायें ............
सबको आगामी वर्ष २०१४ के लिए हार्दिक शुभकामनायें .......

Monday 16 December 2013

शायद प्रकाश हो ....

ना कोई जानता था , ना पहचानता था ! 
जिंदगी का सफ़र आरामदायक भी नहीं था |लेकिन रोज़ नया संघर्ष था ....आँखों में सपने थे और उन्हें साकार करने की चाह थी , हिम्मत थी , जिद थी ...........तो कोई बाधा बड़ी नहीं लगती थी .........||
हर पग सफलता की और ही बढ़ रहा था .........साकार हो ही जाते स्वपन कि ............अचानक ऐसा हुआ जो कल्पना से दूर था .......कभी सोचा ना था .........लेकिन हुआ क्यों कि यही होना था शायद ........समय बहुत क्रूर हो गया ......और उसे जाना पडा .......
आज पैसा है ,नाम भी है ,लोग जानते हैं .......बदल गयी है दुनिया .......................लेकिन कितनी बड़ी कीमत चुकाई ........ये सिर्फ और सिर्फ माता - पिता ,भाई - बहन और परिवार का दर्द जानता है ............
....................निर्भया तुम्हे समाज की श्रधान्जली.......तुम चली गयी लेकिन परिवर्तन की क्षीण लौ जला गयी हो .................शायद प्रकाश हो .......????

Saturday 2 November 2013

सभी मित्रों को दीपों का त्यौहार शुभ हो ,मंगलमय हो ...........


दीपोत्सव की बेला आई , अंजुली भर खुशियाँ ले आई
आँचल में ले आओ समेट, ईश्वर की ये अमूल्य भेंट

बिखर रहा है पुंज प्रकाश , चहुँ और है हर्ष -उल्लास 
आशा दीप जले हर मन में , उजियारा है घर -आँगन में

चाँद विहीन सूना आकाश , धरा है पुलकित अहा !! प्रकाश
नन्ही नहीं लौ मुस्काई , खुशियाँ समेट जहाँ की लायीं

जगमग हो जीवन हर जन का , तम हर ले मुरझाये मन का
तृप्त मुस्कान हो सब अधरों पर , चाह यही है इस अवसर पर

कर बद्ध प्रणाम गुरुजनो को , आशीष प्यार बाल -वृन्दों को .................

यही तो जिंदगी है

कहीं -------------
टिमटिमाते दीप की लौ की भाँति फडफाड़ाती ,
उदास सूनी आँखों के साथ निराशा की गर्त में डूबकी लगाती

तो कहीं -----------
मुस्कराती , कहकहे लगाती आशा दीप जलाती
कहीं -------------
दिलों में पलते ,आँखों में सजते साकार स्वप्न

कहीं -------------
बिना आवाज़ के टूटते , चूर हुए स्वप्न
हर सुबह एक नयी सोच के साथ शुरू होती है 

हर पल , पग -पग रोज़ नए संघर्ष से दो -चार होती है
लेकिन सब इसे ही पाना चाहते हैं , इसे ही गले लगाते हैं

नहीं ये आसान , बेहद जटिल है ...जटिल , बेहद जटिल है
................हाँ यही तो जिंदगी है ......इसी का नाम जिंदगी है .....
.

Friday 13 September 2013

हिंदी दिवस पर विशेष ........




















हिंदी तेरी अजब कहानी
तू मेरे सपनो क़ी रानी
तेरे मर्म से परिचय मेरा 
तुझसे मेरा शाम -सवेरा 
अपने ही घर में अनजान
खो गयी तेरी पहचान
पहन मुखौटा विदेशियों का 
अस्मत क़ी तेरी नीलाम 
और सभी भाषा भी हमको 
लगती तेरी बहन समान 
पर हम सह ,अब नहीं पा रहे ,
हो यहाँ ,तेरा अपमान
नव पीढी तुझसे अनजान
नहीं उन्हें ,तेरा है ज्ञान
वो हैं ,तुझको तुच्छ मानते 
नहीं तेरा स्थान जानते 
मोह भंग कराना होगा 
तेरा सम्मान दिलाना  होगा
बिंदी तू मेरे भारत क़ी
 हिंदी तू मेरा अभिमान
सुंदर वर्णों से अलंकृत 
बढ़ा रही भारत का मान
स्वर ,व्यंजन बच्चे हैं तेरे 
तू है उनकी माँ समान 
हिंदी मुझको गर्व यहाँ है 
तुझसे है मेरी पहचान

Tuesday 13 August 2013

नन्हा सा धागा

Photo: "आप सभी को धागे का ये त्योहार सुन्दर भावनाओं के साथ मुबारक ----------

रेशम का नन्हा सा धागा , नेह , मेह बरसाए 
अक्षत ,रोली का थाल सजाये ,बहन खड़ी इतराए 
मस्तक पर नन्हा सा टीका ,भाई का मान बढाए 
धागा भी सज उठा कलाई पर ,अंतर भीगा जाए 
बचपन की स्म्रतियां मन में ,नयी उमंग जगाएं
उस अंगना की बिसरी यादें ,दिल - दिमाग पर छायें 
घेवर की मिठास घुल गयी ,भाई बहन के प्यार में 
भावनाओं का वेग उमड़ता अपने इस त्यौहार में 
सम्मान बनाए इसका रखना ,स्नेह सूत्र को पकडे रखना
ये रिश्ता मज़बूत बनाए ,आओ भाई को गले लगाएं ...........:)"

रेशम का नन्हा सा धागा , नेह , मेह बरसाए
अक्षत ,रोली का थाल सजाये ,बहन खड़ी इतराए

मस्तक पर नन्हा सा टीका ,भाई का मान बढाए
धागा भी सज उठा कलाई पर ,अंतर भीगा जाए

बचपन की स्म्रतियां मन में ,नयी उमंग जगाएं
उस अंगना की बिसरी यादें ,दिल - दिमाग पर छायें

घेवर की मिठास घुल गयी ,भाई बहन के प्यार में

भावनाओं का वेग उमड़ता अपने इस त्यौहार में

सम्मान बनाए इसका रखना ,स्नेह सूत्र को पकडे रखना
ये रिश्ता मज़बूत बनाए ,आओ भाई को गले लगाएं ........


'आज़ादी की कहानी'


तलवार ,खडग ,बन्दूक चली ,चली तोप की पिचकारी 
बजा युद्ध का बिगुल , 'मनु ' के साथ कड़ी हुई 'झलकारी' 
मंगल पांडे की चिंगारी ,भड़की शोला बनकर
कफ़न बाँध चल पड़े दीवाने , भगवा वस्त्र पहन कर

युवा रक्त हिलौरे मारे , सीने में जलते अंगारे
कलम हाथ ले खड़े हो गए ,उठ समाज के लेखक सारे
हर तहरीर जोश बढाए ,युवा पग अब रूक ना पाए
२०० साल नरक है भोगा , अब तो इनको जाना होगा

सूली बने पेड़ के डाले , हँस -हँस झूल पड़े मतवाले
चौरा -चौरी और काकोरी जैसे ज़ख्म उन्हें दे डाले
नहा लहू से जलियाँ वाला ,रक्तिम एक इतिहास लिख गया
जार -जार रोया था हर दिल ,मर्म सभी का वो छू गया

बना साक्षी काला पानी , असंख्य वीरो की कुर्बानी
अमानवीय था जो सह आया , सावरकर सा अमर बलिदानी
असहनीय था जो सहते थे , आँखों में सपने रहते थे
पार हदें क्रूरता करती ,मानवता सिसकी थी भरती

सेलुलर बना पांचवां धाम ,
..नत मस्तक हर हिन्दुस्तानी ,करता है दिल से सम्मान
खो गए अनेक इतिहास में , आ नहीं सके प्रकाश में
कम नहीं उनका योगदान , आओ करें मिल उन्हें सलाम

आखिर एक सुबह वो आई , आज़ादी की खुशबू लाई
'यूनियन जैक' परास्त हो गया ,भारतीय ध्वज ने विजय पायी
फहर तिरंगा लाल किले पर ,आसमान में लहराया
धुन बज उठी राष्ट्र गान की, जज्बे से सबने गाया

किया सामना बंटवारे का , खंडित होते भाई चारे का
हे तिरंगे तुझे सलाम , हर बलिदानी का मान
धूमिल न हो पाए आज़ादी , हर पीढ़ी का है ये काम ...........जय हिंद

Sunday 21 July 2013

अहा !!! स्वादिष्ट

लेखा -जोखा

'मोदी ने ग्यारह सालों में गुजरात में क्या किया' .......माकन 

अब सूप तो ठीक छलनी का सवाल गले नहीं उतरता 
ग्यारह साल के रिपोर्ट कार्ड से पहले 66 साल का लेखा हो जाए 'साहब' ........????

.. शरद यादव का बिहार में बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा

........नाव तैयार .....
चमचे आस-पास ........नौका विहार पर चले .................रास्ते में काजू-किशमिश और बढ़िया बिस्किट का नाश्ता ..........कुछ देर निंदिया रानी ने भी आगोश में ले लिया .....चारों और पानी ही पानी था .........ठंडी हवा थी ..बड़ा अच्छा लग रहा था 
......लुत्फ़ आया ही था कि........एक किनारे कुछ भूखे - नंगे बच्चे और और मजदूर से दिखने वाले लोग दिखने लगे .....उफ्फ्फ ये लोग भी न !!!!!!!...
सब कुछ आनंद विहीन लगने लगा कहाँ से आ गए ये लोग ...??
............किसी ने कान में कहा
'सर हम बाढ़ पीड़ित गाँव में आ गए हैं ..........!!!!!!!!.............'
ओह !! चौंक उठे मंत्रीजी ......................................
.................................................. शरद यादव का बिहार में बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा

क्या होगा ?

टैक्सी और आटो वाले बैज पहनेँगे ,लिखा होगा-"I RESPECT WOMEN "
.................................................................. - FROM----पर्यटन मंत्रालय 
और बड़ी गाड़ियोँ मेँ घूमते बिगड़े दिल शहज़ादे कौन सा बैज लगायेँगे !! 
उनका का कया होगा ?

Sunday 30 June 2013

तम की चादर


तम की चादर ओढ़ सांझ ने ,
धीरे-धीरे पाँव पसारा
आँख  मिचौली खेल ज़रा सी ,,
तम उर में छिप गया उजाला 
पलकों में सिमटे ख्वाबों ने , 
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई 
अभिनन्दन करके निद्रा का, 
सीमा  अपनी और बढाई
समां गए सपने अंखियों में, 
पलक लगे ढलके-ढलके
लोरी भी गा रही ख़ामोशी,, 
सहलाती हलके-हलके

Thursday 20 June 2013

ये भी एक सच !!!!!

केदारनाथ मंदिर के भीतर कोई नुकसान नहीं हुआ है। 
उत्तराखंड में बाढ़ की सबसे ज्यादा विभीषिका झेलने वाले केदारनाथ में मंदिर गर्भगृह को छोड़कर कुछ नहीं बचा है-------
एक कारण ये भी होगा कि इसका निर्माण वैज्ञानिक आधार पर हुआ होगा ..
भारत सालो पहले से ही तकनीकी क्षेत्र में बेहतर रहा है ..........पहले आज की तरह
भेड -चाल तो थी नहीं ......ना ही खाना-पूरी होती थी .......इमानदारी और निष्ठा से कार्य होता था ... ............बड़े ही नियोजित और सुचारू ढंग से निर्मित रहा होगा ये मंदिर .......
बल्कि जगह -जगह पहाडो पर सालों पुराने हमारे ये मंदिर अपनी विशेष निर्माण विधि से ही आज भी सुरक्षित हैं .............गुफाओं में कंदराओ में जहाँ -तहां मंदिर मिल जाते हैं और हम इनके आस -पास अवैध निर्माण कर इन्हें खोखला कर रहे हैं ..................और भयावह परिणाम भी झेल रहे हैं 

Thursday 13 June 2013

बरखा रानी करे निहाल ----------

1-बार -बार मेघा गरजाए 
धरा पुलक -पुलक हुई जाए 

2-अंधियारा छाया है दिन में 
 चमके बिजली दूर गगन में 

3-घुमड़ -घुमड़ कर मेघा आये 
पिहू पपीहा शोर मचाये 

४-पल-पल धरती दरक रही है 
बिन पानी के सिसक रही है 

५-गुनगुनाती मेघ मल्हार 
बरखा रानी खड़ी है द्वार 

६-झमझमाझम झम-झम , झम-झम 
भीग रहा है हर अंतर मन 

७-रिमझिम -रिमझिम बरस रहा है 
मन भी संग -संग भीग रहा है 

८-ताप सहे हो गए बेहाल 
बरखा रानी करे निहाल ....................

अतृप्त धरा

तपिश झेल चुकी धरती माता ,अन्दर तक आहत है 
दरक धरा का ह्रदय गया है ,सबके लिए घातक है 
ताप जेठ का खूब सहा है , स्वेद कृषक का खूब बहा है 
जार-जार रोती रहती है , ज़ख़्म ढके अपने  रहती है 
रोज़ -रोज़ विनती करते हैं ,इंद्र देव तुमको तकते हैं 
आसमान में बदली छायी , मुस्कान सभी मुख पर ले आई 
नन्ही बूंदे भी ले आओ , रिमझिम -रिमझिम गीत सुनाओ 
अतृप्त धरा का मन रीझेगा  , सराबोर अंतर भीगेगा 
आशीष हुलस -हुलस कर देगी , अन्न-धनं  से घर भर देगी 

Tuesday 11 June 2013

प्रिन्सिज़

प्रभलीन तुम्हे लेकर कई बार बड़ा भावुक हो जाती हूँ
शायद जानती हो तुम भी !!
पिछले दिनों तुम्हारी कुछ तस्वीरें देखी मुझे इतनी अच्छी लगी कि रुका ही नहीं गया मुझसे  प्रिन्सिज़ ...:)
तुम बहुत अच्छी लग रही हो उनमें ...और ये पंक्तियाँ तुम्हारी शान में ... :)

मेरी राजदुलारी सी हो
सुन्दर गुडिया प्यारी सी हो
शब्द कोष अब रिक्त हो चला
इस जग में तुम न्यारी सी हो ||

मनभावन परिधान पहनती
गरिमा जिसमें एक झलकती
दिल को बड़ा सुकून मिला है
कीचड में एक कमल खिला है ||

मुस्कान तेरे चेहरे पर छाई
जिसने सारी कथा सुनाई
मर्यादा रिश्तों में देखी ,हाव-भाव शालीन
छू गया अंदाज़ तुम्हारा ,सच कहूँ प्रभलीन........




Monday 10 June 2013

बरखा रानी बरखा रानी









बरखा रानी बरखा रानी 
मत करो अपनी मनमानी 
सता चुके हैं सूरज दादा 
अब लेकर आजाओ पानी 
छुट्टियाँ बीती नानी के घर 
पसीना बहा खूब अंजुली भर 
मंच सज़ा है आओ तो 
आकर मुह दिखलाओ तो 
हर आहट पर इंतज़ार है 
गर्मी से हुए बेज़ार हैं
आओ अपना कद पहचानो 
अपनी एहमियत को जानो 
मंतव्य हमारा पूरा करदो 
सबके मन खुशियों से भर दो 
अभिनन्दन को खड़े तैयार 
बरखा रानी आये तो द्वार

Saturday 8 June 2013

लघु कथा

बात उस दिनों की है जब जंगल हुआ करते थे -------------
कई जानवर ,मरे जानवरों को खाकर वहां की गंदगी हटा देते थे उनमें लोमड़ी और गिद्ध प्रमुख थे 
जंगल रहे नहीं मानव भेष धर गिद्ध और लोमड़ी ने शहर की राह पकड़ी ...
जंगल को साफ़ करने वाले अब समाज को प्रदूषित कर रहे हैं ......

Friday 7 June 2013

पारिजात के पुष्प













छोटे और सुन्दर पारिजात के पुष्प
जन्म लेते ही भारी विपदा से निपटते हैं
भोर की पहली किरण पर झूमते
नत मस्तक हो धरा को चूमते हैं
नियति मान कर्तव्य का मान रख
पारिजात के योद्धा चुनौती को निकलते हैं
बिना सिलवटों के चादर सामान
धरा को ढक अभिमान से ,प्रणेता को तकते हैं
सिर्फ अधिकार नहीं ,दायित्व की भाषा भी खूब समझते हैं
जीवन की आहुति से भी नहीं डरते
जड़ों से कटने का दर्द भी अन्दर ही निगलते हैं ...
.

Friday 31 May 2013

दर्द ....
















नन्हे पौधों को दरख़्त बनते देखा है , 
मैंने रिश्तों को परवान चढ़ते देखा है 

भावनाओ की हरियाली में ,प्यार से सींचे रिश्तों को जिया है  
अपने-पन का अमृत भी पल-पल पिया है 
जब रिश्ते मज़बूत और मज़बूत होते जा रहे थे , 
तब नन्हे पौधे भी अपने पाँव आँगन में पसार रहे थे 
रिश्ते प्यार के धरातल पर मज़बूत नज़र आते थे , 
नन्हे पौधों में भी दरख़्त बनने के आसार नज़र आते थे 

समय ने रिश्तों को मज़बूत डोर में बाँध दिया ,
पौधों ने भी दरखत बन आँगन में छाँव का समां बाँध दिया  
कुछ पंछियों  ने  दरख्तों पर आशियाना  बना लिया और  
उनके कलरव को वहां - वहां  सबने अपना लिया  

समय बीता तो रिश्ते कुछ दूर -दूर होने लगे , 
दिल से तो पास ही थे समय के हाथों  मजबूर होने लगे 
पौधों के भी पत्ते कुछ पीले पड़ने लगे ,, 
पतझड़ आया तो तेज़ी से झड़ने लगे 
पंछी घोंसले उनके  नन्हों से रिक्त होने लगे  

जल्द ही वहां वीराना पाँव पसारने लगा 

रिश्तों में दरके जाने का डर नज़र आने लगा 

दरख्तों  को किसी ने उखाड़  दिया ,,
 एक ही झटके में उन्हें उजाड़ दिया  
पर रिश्तों को दरका न सका   !!!!!!! 
जिस आरी को दरख्त सह न पाया, 
उसका वार रिश्तों पे चल न सका   

नियति के इस खेल को भावनाओ  ने जिता दिया  
आरी के वार से अपनेपन को बचा लिया 
समय ने एक करवट ली और सब छिटक कर दूर हो गए  
शायद बहुत  मजबूर  हो गए  !!!!!
दूर ज़रूर हो गए पर अपने प्यार और संस्कार की बदौलत  
आज भी साथ खड़े नज़र आते हैं 
दरख्तों के कटने पर ज़रूर आंसू बहाते हैं.

पंछियों के  कलरव को याद कर, 
दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर ले आते हैं.
पर अपने प्यार भरे बंधन पर आज भी इतराते हैं
और ईश्वर से दुआ मनाते हैं 
कि इन रिश्तों को दरकने से बचाना और  
हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना  
 हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना 


Wednesday 29 May 2013

हाँ में बांस हूँ













.हाँ में बांस हूँ


बेहद सघन
लम्बी हरी रचना का संगठन
मिटटी को जड़ में जकड
लेता यहीं सांस हूँ
..जाति में घास हूँ
हाँ में बांस हूँ

'हरा सोना' बन
ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता हूँ ..
अदभुद क्षमता
विकिरण हरने की रखता हूँ......
प्रदुषण रहित इंधन बन
यहाँ भी कुछ ख़ास हूँ
..हाँ में बांस हूँ

Saturday 25 May 2013

मेरा गाँव














.एक चौपाल ,असंख्य पेड़ों की छांव, लहलहाते खेत

यही था मेरा गाँव ..

घर -घर में मिटटी और गोबर की लिपाई-पुताई ,

वाह !! क्या साफ़- सफाई

कहीं कोई दादी ,चाची और ताई , न कोई बनावट और न झूठा आवरण

सिर्फ अपनापन और सच्चाई

औपचारिकता के दायरे से बाहर रिश्तों का आभास

गुड और साथ में मट्ठे का गिलास

प्यार के साथ-साथ ,खाने में भी सबका भाग

चूल्हे की सौंधी रोटी और प्यार के तडके का साग

आह !!! शहर की पक्की सड़क पर खो गया

वो प्यार और अपनापन ,

खाने की मिठास और मिटटी का सौंधापन

औपचरिक लिबास पहन , पकड़ ली शहर की राह

गाँव के प्यार और अपने पन की अब भी कहीं उठती है चाह ....

गाँव के प्यार और अपने पन की अब भी कहीं उठती है चाह ........

Thursday 23 May 2013

एक पुरानी रचना ----भावनाओं का ज्वार





१---ताला खोलते ही अन्दर कुछ चटकता है 
भावनाओं का ज्वार गले में अटकता है 
याद आ जाता है वो ----

एक मुखड़ा निश्छल हंसी , तृप्ति के साथ 
जब बढ़ आते थे स्वागत को माँ के हाथ 
गले मिल उमड़ता आँखों में सैलाब 
मन करता करूँ जोर -- जोर से प्रलाप 
गले लगा कर कन्धों को थपथपाना 
और अपने आंसुओं को आंचल में छिपाना .

मानो उनके पंख उग आते थे 
जब हम बच्चों के साथ माँ के घर जाते थे












२---उदास सुनी रसोई भी मुस्कराती ,
बर्तनों के साथ खुल कर खिलखिलाती
नल का पानी जल तरंग बजाता
तो बर्तनों का साज नयी धुन पर इतराता
कलछुल बेफिरी से छौंक लगाती
कुकर की सीटी भी अलग अंदाज़ दिखाती
दूध और दलिए के आदी ये बर्तन
उत्साह से भर जाते और
हर नए पकवान में अपना योगदान निभाते थे














३---जब तक बच्चे रहते घर का हर कौना गुलज़ार रहता .
खिलखिलाहटों और ठहाकों का दौर बरकरार रहता
आइसक्रीम , गुब्बारे वाले जोर से आवाज़ लगाते
देर तक दरवाज़े के पास ही मंडराते
बच्चों के जाने का दिन आता तो वो बेज़ार हो जातीं
उनके चेहरे की प्रफुल्लता गायब हो जाती
रसोई बे--रौनक ,कढाई बे--नूर नज़र आती
वो दिन , वो यादें दिल के बहुत पास है ...
उनके साथ बीता हर लम्हा बहुत ख़ास है ..















आज भी ताला खोला तो जालों का अम्बार है
धूल का साम्राज्य और उमस की भरमार है ..
कुछ दिन यहाँ रह कर 'मकान' को 'घर' बनायेंगे
उन मीठी 'यादों' को अपनी 'बातों' में सहलायेंगे
रसोई के उदास बर्तनों को भी थपथपा कर फुसलायेंगे
कुछ लम्हों को जी कर यहाँ कुछ छोड़ देंगे और बाकी साथ ले जायेंगे
और फिर
ताला बंद कर इस 'घर' को 'मकान' घोषित कर
अगले साल फिर आयेंगे ......
हे ईश्वर हमें साहस देना ये सिलसिला यूँही अनवरत चलता रहे
माता -पिता का ये दर ,बरस हर बरस खुलता रहे

घर की छत