Friday 24 January 2014

कैसी ये तृष्णा.

आंखों में झिलमिलाते स्वप्न 
..........साकार होते देखने हेतु जिंदगी भर संघर्षरत बढ़ते पग .........
................बढ़ते समय के साथ कुछ टूटते , कुछ साकार स्वप्न .........
...........सफलता और असफलता के बीच झूलते ,पल -पल जीते ................
.........अचानक जब खाली हाथ आया पंछी ,खाली हाथ ही नीड छोड़ उड़ जाता ............
...............छोड़ अपना आधा-अधूरा घर-बार .......बड़े से सा प्रश्न चिन्ह के साथ ..!!!!
...........तब लगता !!! कैसी ये तृष्णा..??...क्या यही है संसार ???