जन्म लेते ही भारी विपदा से निपटते हैं
भोर की पहली किरण पर झूमते
नत मस्तक हो धरा को चूमते हैं
नियति मान कर्तव्य का मान रख
पारिजात के योद्धा चुनौती को निकलते हैं
बिना सिलवटों के चादर सामान
धरा को ढक अभिमान से ,प्रणेता को तकते हैं
सिर्फ अधिकार नहीं ,दायित्व की भाषा भी खूब समझते हैं
जीवन की आहुति से भी नहीं डरते
जड़ों से कटने का दर्द भी अन्दर ही निगलते हैं ....
