चुरा लिए हैं कुछ पल मैंने ,बचपन की स्मृतियों से
संग सखियों के व्यय करेंगे ,अपने स्मृति कलश भरेंगे
स्मृतियों में गोदी दादी की ,हठ है और ठिनकना है
मक्की की सौंधी रोटी संग ,शक्कर दूध और मखना है
ओत -प्रोत माँ की झिडकी से ,मधुर स्मृति झांकी खिड़की से
धूल ज़रा सी और हटाई ,माँ ने कपोल पर चपत जमाई
कमरे में हैं कई खिलौने , केरम और शतरंज जमी है
कभी साइकिल तेज़ चल रही ,संग सखियों के रेस लगी है
अपने इस छोटे से अँगने ,स्मृतियाँ बिखरी है हर कौने
उचल-कूद और हाथापाई , सचमुच हो गयी कभी लड़ाई
हल्का सा छू लिया दीवार को ,गूंजा बीता हास -परिहास
हंसी -ठिठौली और चिढाना ,गा रहे गाना आस -पास
रसोई देख भावुक हो आई, कलुछ हाथ माँ पड़ी दिखाई
स्वादिष्ट और सुगन्धित व्यंजन ,करते थे सबका अभिनन्दन
मीठी प्यारी स्मृतियों में विचरण दूर-दूर तक कर आयी
स्मृति कलश को लगा ह्रदय से वर्तमान के दर पर आयी
संग सखियों के व्यय करेंगे ,अपने स्मृति कलश भरेंगे
स्मृतियों में गोदी दादी की ,हठ है और ठिनकना है
मक्की की सौंधी रोटी संग ,शक्कर दूध और मखना है
ओत -प्रोत माँ की झिडकी से ,मधुर स्मृति झांकी खिड़की से
धूल ज़रा सी और हटाई ,माँ ने कपोल पर चपत जमाई
कमरे में हैं कई खिलौने , केरम और शतरंज जमी है
कभी साइकिल तेज़ चल रही ,संग सखियों के रेस लगी है
अपने इस छोटे से अँगने ,स्मृतियाँ बिखरी है हर कौने
उचल-कूद और हाथापाई , सचमुच हो गयी कभी लड़ाई
हल्का सा छू लिया दीवार को ,गूंजा बीता हास -परिहास
हंसी -ठिठौली और चिढाना ,गा रहे गाना आस -पास
रसोई देख भावुक हो आई, कलुछ हाथ माँ पड़ी दिखाई
स्वादिष्ट और सुगन्धित व्यंजन ,करते थे सबका अभिनन्दन
मीठी प्यारी स्मृतियों में विचरण दूर-दूर तक कर आयी
स्मृति कलश को लगा ह्रदय से वर्तमान के दर पर आयी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 25 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबचपन की यादें अक्सर गिद्गुदाती हैं ...
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता
ReplyDeleteBachpan ki yaad ...taaza ho gai :)
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