Wednesday, 24 April 2013

.स्मृतियों की सैर



               
चुरा लिए हैं कुछ पल मैंने ,बचपन की .स्मृतियों से 
संग सखियों के व्यय करेंगे ,अपने स्मृति कलश भरेंगे 

.स्मृतियों में गोदी दादी की ,हठ है और ठिनकना है 
मक्की की सौंधी रोटी संग ,शक्कर दूध और मखना है 

ओत -प्रोत माँ की झिडकी से ,मधुर स्मृति झांकी खिड़की से 
धूल ज़रा सी और हटाई ,माँ ने कपोल पर चपत जमाई 

कमरे में हैं कई खिलौने , केरम और शतरंज जमी है 
कभी साइकिल तेज़ चल रही ,संग सखियों के रेस लगी है 

अपने इस छोटे से अँगने ,स्मृतियाँ बिखरी है हर कौने 
उचल-कूद और हाथापाई , सचमुच हो गयी कभी लड़ाई 

हल्का सा छू लिया दीवार को ,गूंजा बीता हास -परिहास 
हंसी -ठिठौली और चिढाना ,गा रहे गाना आस -पास 

रसोई देख भावुक हो आई, कलुछ हाथ माँ पड़ी दिखाई 
स्वादिष्ट और सुगन्धित व्यंजन ,करते थे सबका अभिनन्दन 

मीठी प्यारी .स्मृतियों में विचरण दूर-दूर तक कर आये 
स्मृति कलश को लगा ह्रदय से वर्तमान के दर पर आये 

10 comments:

  1. bahut sunder.......bachpan ke dwar per pahuncha diya phir se ....

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  2. ........कितनी सुन्दर था न सब कुछ

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  3. स्मृतियों के आँगन में बसा जीवन का सार
    बहुत सुंदर अनुभूति
    मन को छूती हुई रचना
    बधाई

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    1. धन्यवाद ज्योति जी ........:)

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  4. pyari si yaaden..
    bachpan ko yaad karwati rachna..
    bahut khub...

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    1. आभार मुकेश जी .........प्रसन्नता हुई आपके आगमन पर ......

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  5. बहुत सुन्दर रचना ..............यादें संजोयी है आपने अपनी रचना में ..............

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    1. संध्या जी हार्दिक आभार .........

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  6. अच्छी अभिव्यक्ति...

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