मजदूर दिवस पर विशेष .......
सड़क किनारे बसे बसेरे ,
सड़क किनारे बसे बसेरे ,
चूल्हे जलते शाम -सवेरे
कभी धूप में चलें हथौडे ,
कुदाल -फावड़े ने कभी घेरे
शीत-लहर जब देती दस्तक ,
उंचा रहता तब भी मस्तक
झुग्गियों की दिखती कतार ,
प्रशासन पर करे प्रहार
हाथ हथौड़े आँख अंगार ,
अस्त्र -शस्त्र ले रहे तैयार
कभी कुल्हाड़ी लिखे तहरीर ,
कभी सोयी लगती तकदीर
खेत-खलिहान को कभी सहलाते ,
कभी कृषक बन कनक उगाते
चीर कभी धरा का सीना बाहर हरियाली ले आते
खेत-खलिहान को कभी सहलाते ,
कभी कृषक बन कनक उगाते
चीर कभी धरा का सीना बाहर हरियाली ले आते
कंक्रीट के जंगल में नए मोर्चे नयी है जंग,
रंगहीन कुछ स्वप्न हो जाते .कुछ में भर जाते हैं रंग
दस्तावेज़ ईट-पत्थर के यूँही नहीं लिख जाते
रण-बाँकुरे खून-पसीने से अक्षर चमकाते
स्थान बनाए रखने को अपना , लड़नी पड़ती जंग
उड़ान भरेंगे संग सपनो के , हो ना जाए भंग
भूल गए कर्णधार इन्हें , नहीं देते सम्मान
आधार यही मज़बूत देश के ,इनमें बसते प्राण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-05-2013) बुधवासरीय चर्चा --- 1231 ...... हवा में बहे एक अनकहा पैगाम ....कुछ सार्थक पहलू में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार शास्त्री जी
ReplyDeleteसही कहा , नींव के पत्थर तो यही मजदूर ही होते हैं ...
ReplyDeleteधन्यवाद सखी .........
Deleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteआभार आपका
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ReplyDeleteमार्मिक,भावुक,
गजब का अहसास
मजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
मजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
आपका आभार ज्योति जी .........में आपके ब्लॉग का अनुसरण कर चुकी हूँ सर
Deleteprabhavshali kavita...
ReplyDeleteशुक्रिया अरुणजी
Deleteसुंदर रचना .आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
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