Tuesday 30 April 2013

देश का आधार

मजदूर दिवस पर विशेष .......

सड़क किनारे बसे बसेरे ,
चूल्हे जलते शाम -सवेरे 
कभी धूप में चलें हथौडे , 
कुदाल -फावड़े ने कभी घेरे 
शीत-लहर जब देती दस्तक , 
उंचा रहता तब भी मस्तक 
झुग्गियों की दिखती कतार , 
प्रशासन पर करे प्रहार 
हाथ हथौड़े आँख अंगार , 
अस्त्र -शस्त्र ले रहे तैयार 
कभी कुल्हाड़ी लिखे तहरीर , 
कभी सोयी लगती तकदीर 
खेत-खलिहान को कभी सहलाते , 
कभी कृषक बन कनक उगाते 
चीर कभी धरा का सीना बाहर हरियाली ले आते 
कंक्रीट के जंगल में नए मोर्चे नयी है जंग,  
रंगहीन कुछ स्वप्न हो जाते .कुछ में भर जाते हैं रंग 
दस्तावेज़ ईट-पत्थर के यूँही नहीं लिख जाते 
रण-बाँकुरे खून-पसीने से अक्षर चमकाते 
स्थान बनाए रखने को अपना , लड़नी पड़ती जंग 
उड़ान भरेंगे संग सपनो के , हो ना जाए भंग 
भूल गए कर्णधार इन्हें , नहीं देते सम्मान 
आधार यही मज़बूत देश के ,इनमें बसते प्राण


12 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-05-2013) बुधवासरीय चर्चा --- 1231 ...... हवा में बहे एक अनकहा पैगाम ....कुछ सार्थक पहलू में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. सादर आभार शास्त्री जी

    ReplyDelete
  3. सही कहा , नींव के पत्थर तो यही मजदूर ही होते हैं ...

    ReplyDelete
  4. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

    ReplyDelete

  5. मार्मिक,भावुक,
    गजब का अहसास
    मजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
    मजदूर दिवस पर सार्थक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    विचार कीं अपेक्षा
    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आभार ज्योति जी .........में आपके ब्लॉग का अनुसरण कर चुकी हूँ सर

      Delete
  6. Replies
    1. शुक्रिया अरुणजी

      Delete
  7. सुंदर रचना .आभार...

    ReplyDelete

आपके आगमन पर आपका स्वागत है .................
प्रतीक्षा है आपके अमूल्य विचारों की .
कृपया अपनी प्रतिक्रया अवश्य लिखिए