Sunday, 19 May 2013

सूरज दादा

सूरज दादा बड़ी अकड़ में रोज़ सवेरे आते हैं
मस्तक उंचा करे गर्व से अभिमानी बन जाते हैं

धूप चमकती खिली रुपहली तपती धरा खूब पथरीली
बहे पसीना बार -बार और त्वचा लग रही गीली -गीली

लू ने भी है धूम मचाई थप्पड़ मारे ले अंगडाई
इधर -उधर कीगरम हवा ने बेचैनी है और बढाई

ठंडा सतुआ मन को भाये , लस्सी ,शरबत के दिन आये
पल -पल सूख रहे हलक में शीतलता तरावट लाये

बेल का शरबत राहत देगा, अपच पेट का ठीक करेगा
लथपथ हुए पसीने से जन , विद्युत् विभाग कर रहा हरि भजन

मेहनतकश भी हुए हलकान , करते हैं महसूस थकान
सूरज दादा करो तपन कम ,हाथ जोड़ करे विनती हम

14 comments:

  1. मैं आपको पढ़ता हूं, कई बार हैरानी होती है, वजह ये कि साइंस की स्टूडैंट होने के बावजूद भाषा पर पकड़ और विचारों में इस हद तक नयापन। बहुत सुंदर
    अच्छी रचना
    शुभकामनाएं...

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  2. महेंद्र जी ब्लॉग पर आप मित्रों की उपथिति अत्यन सुखद और प्रेरणा दाई
    आपके विचार अमूल्य.........आभार आपका

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन भारत के इस निर्माण मे हक़ है किसका - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. धन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन

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  4. सुन्दर रचना...
    गरमी में ठंडी बयार सी :-)

    अनु

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  5. धन्यवाद ब्लॉग प्रसारण

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  6. क्‍या बात है ... बहुत ही बढिया।

    आभार

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    1. स्वागत है आगमन पर ,धन्यवाद आपका

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  7. सुन्दर ... सूरज देवता के आने के माहोल को बांधा है ...
    ठंडी हवा सी बह रही हो जैसे ...

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    1. बहुत सुन्दर दिगंबर जी धन्यवाद

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  8. सुन्दर निवेदन सूर्य से.

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    1. धन्यवाद निहार जी

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  9. अति सुंदर रचना ....बधाई

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आपके आगमन पर आपका स्वागत है .................
प्रतीक्षा है आपके अमूल्य विचारों की .
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