सूरज दादा बड़ी अकड़ में रोज़ सवेरे आते हैं
मस्तक उंचा करे गर्व से अभिमानी बन जाते हैं
धूप चमकती खिली रुपहली तपती धरा खूब पथरीली
बहे पसीना बार -बार और त्वचा लग रही गीली -गीली
लू ने भी है धूम मचाई थप्पड़ मारे ले अंगडाई
इधर -उधर कीगरम हवा ने बेचैनी है और बढाई
ठंडा सतुआ मन को भाये , लस्सी ,शरबत के दिन आये
पल -पल सूख रहे हलक में शीतलता तरावट लाये
बेल का शरबत राहत देगा, अपच पेट का ठीक करेगा
लथपथ हुए पसीने से जन , विद्युत् विभाग कर रहा हरि भजन
मेहनतकश भी हुए हलकान , करते हैं महसूस थकान
सूरज दादा करो तपन कम ,हाथ जोड़ करे विनती हम
मस्तक उंचा करे गर्व से अभिमानी बन जाते हैं
धूप चमकती खिली रुपहली तपती धरा खूब पथरीली
बहे पसीना बार -बार और त्वचा लग रही गीली -गीली
लू ने भी है धूम मचाई थप्पड़ मारे ले अंगडाई
इधर -उधर कीगरम हवा ने बेचैनी है और बढाई
ठंडा सतुआ मन को भाये , लस्सी ,शरबत के दिन आये
पल -पल सूख रहे हलक में शीतलता तरावट लाये
बेल का शरबत राहत देगा, अपच पेट का ठीक करेगा
लथपथ हुए पसीने से जन , विद्युत् विभाग कर रहा हरि भजन
मेहनतकश भी हुए हलकान , करते हैं महसूस थकान
सूरज दादा करो तपन कम ,हाथ जोड़ करे विनती हम
मैं आपको पढ़ता हूं, कई बार हैरानी होती है, वजह ये कि साइंस की स्टूडैंट होने के बावजूद भाषा पर पकड़ और विचारों में इस हद तक नयापन। बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
शुभकामनाएं...
महेंद्र जी ब्लॉग पर आप मित्रों की उपथिति अत्यन सुखद और प्रेरणा दाई
ReplyDeleteआपके विचार अमूल्य.........आभार आपका
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन भारत के इस निर्माण मे हक़ है किसका - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन
Deleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteगरमी में ठंडी बयार सी :-)
अनु
धन्यवाद अनु
Deleteधन्यवाद ब्लॉग प्रसारण
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteआभार
स्वागत है आगमन पर ,धन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर ... सूरज देवता के आने के माहोल को बांधा है ...
ReplyDeleteठंडी हवा सी बह रही हो जैसे ...
बहुत सुन्दर दिगंबर जी धन्यवाद
Deleteसुन्दर निवेदन सूर्य से.
ReplyDeleteधन्यवाद निहार जी
Deleteअति सुंदर रचना ....बधाई
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