भावनाओं का ज्वार गले में अटकता है
याद आ जाता है वो ----
एक मुखड़ा निश्छल हंसी , तृप्ति के साथ
जब बढ़ आते थे स्वागत को माँ के हाथ
गले मिल उमड़ता आँखों में सैलाब
मन करता करूँ जोर -- जोर से प्रलाप
गले लगा कर कन्धों को थपथपाना
और अपने आंसुओं को आंचल में छिपाना .
मानो उनके पंख उग आते थे
जब हम बच्चों के साथ माँ के घर जाते थे
२---उदास सुनी रसोई भी मुस्कराती ,
बर्तनों के साथ खुल कर खिलखिलाती
नल का पानी जल तरंग बजाता
तो बर्तनों का साज नयी धुन पर इतराता
कलछुल बेफिरी से छौंक लगाती
कुकर की सीटी भी अलग अंदाज़ दिखाती
दूध और दलिए के आदी ये बर्तन
उत्साह से भर जाते और
हर नए पकवान में अपना योगदान निभाते थे
३---जब तक बच्चे रहते घर का हर कौना गुलज़ार रहता .
खिलखिलाहटों और ठहाकों का दौर बरकरार रहता
आइसक्रीम , गुब्बारे वाले जोर से आवाज़ लगाते
देर तक दरवाज़े के पास ही मंडराते
बच्चों के जाने का दिन आता तो वो बेज़ार हो जातीं
उनके चेहरे की प्रफुल्लता गायब हो जाती
रसोई बे--रौनक ,कढाई बे--नूर नज़र आती
वो दिन , वो यादें दिल के बहुत पास है ...
उनके साथ बीता हर लम्हा बहुत ख़ास है ..
आज भी ताला खोला तो जालों का अम्बार है
धूल का साम्राज्य और उमस की भरमार है ..
कुछ दिन यहाँ रह कर 'मकान' को 'घर' बनायेंगे
उन मीठी 'यादों' को अपनी 'बातों' में सहलायेंगे
रसोई के उदास बर्तनों को भी थपथपा कर फुसलायेंगे
कुछ लम्हों को जी कर यहाँ कुछ छोड़ देंगे और बाकी साथ ले जायेंगे
और फिर
ताला बंद कर इस 'घर' को 'मकान' घोषित कर
अगले साल फिर आयेंगे ......
हे ईश्वर हमें साहस देना ये सिलसिला यूँही अनवरत चलता रहे
माता -पिता का ये दर ,बरस हर बरस खुलता रहे
घर की छत
अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842
आभार महेंद्र जी
Deleteअभी देखती हूँ ........
bahut hi achchi rachna.pahle bhi padi thi to bahut achchi lagi thi aaj phir pad kar bhi aankh bhar aayi.
ReplyDeleteरीता जी आभार आपका
Deleteआप की रचना पढ़ के आँखे भीग गई अरुणा जी ...... बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना, बधाई आप को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2013) के गर्मी अपने पूरे यौवन पर है...चर्चा मंच-अंकः१२५४ पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार मयंक जी
ReplyDeleteसुन्दर रचना. उम्मीद है बारम्बार खुलता रहे.
ReplyDeleteआभार निहार जी
Deletebehtareen rachna......
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी
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