नन्हे पौधों को दरख़्त बनते देखा है ,
मैंने रिश्तों को परवान चढ़ते देखा है
अपने-पन का अमृत भी पल-पल पिया है
जब रिश्ते मज़बूत और मज़बूत होते जा रहे थे ,
तब नन्हे पौधे भी अपने पाँव आँगन में पसार रहे थे
रिश्ते प्यार के धरातल पर मज़बूत नज़र आते थे ,
नन्हे पौधों में भी दरख़्त बनने के आसार नज़र आते थे
समय ने रिश्तों को मज़बूत डोर में बाँध दिया ,
पौधों ने भी दरखत बन आँगन में छाँव का समां बाँध दिया
कुछ पंछियों ने दरख्तों पर आशियाना बना लिया और
उनके कलरव को वहां - वहां सबने अपना लिया
समय बीता तो रिश्ते कुछ दूर -दूर होने लगे ,
दिल से तो पास ही थे समय के हाथों मजबूर होने लगे
पौधों के भी पत्ते कुछ पीले पड़ने लगे ,,
पतझड़ आया तो तेज़ी से झड़ने लगे
पंछी घोंसले उनके नन्हों से रिक्त होने लगे
जल्द ही वहां वीराना पाँव पसारने लगा
रिश्तों में दरके जाने का डर नज़र आने लगा
जल्द ही वहां वीराना पाँव पसारने लगा
रिश्तों में दरके जाने का डर नज़र आने लगा
दरख्तों को किसी ने उखाड़ दिया ,,
एक ही झटके में उन्हें उजाड़ दिया
पर रिश्तों को दरका न सका !!!!!!!
जिस आरी को दरख्त सह न पाया,
उसका वार रिश्तों पे चल न सका
नियति के इस खेल को भावनाओ ने जिता दिया
आरी के वार से अपनेपन को बचा लिया
समय ने एक करवट ली और सब छिटक कर दूर हो गए
शायद बहुत मजबूर हो गए !!!!!
दूर ज़रूर हो गए पर अपने प्यार और संस्कार की बदौलत
आज भी साथ खड़े नज़र आते हैं
आज भी साथ खड़े नज़र आते हैं
दरख्तों के कटने पर ज़रूर आंसू बहाते हैं.
पंछियों के कलरव को याद कर,
दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर ले आते हैं.
दर्द भरी मुस्कान चेहरे पर ले आते हैं.
पर अपने प्यार भरे बंधन पर आज भी इतराते हैं
और ईश्वर से दुआ मनाते हैं
कि इन रिश्तों को दरकने से बचाना और
हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना
कि इन रिश्तों को दरकने से बचाना और
हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना
हे ईश्वर इन्हें यूंही परवान चढ़ाना
सुंदर अभिव्यक्ति बहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार शान्ति जी
Deleteबहुत खूब.
ReplyDeleteआभार रीता जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
क्या कहने
महेंद्र जी आभार
Deleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनिहार जी आभार
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-06-2013) के चर्चा मंच 1263 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुण जी आभार मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए और क्षमाप्रार्थी हूँ समय पर नहि आ पा रही हूँ आज-कल
DeleteSunder rachna
ReplyDeleteमंजुल जी आभार
Deleteगहन भाव लिए अच्छी रचना
ReplyDeleteआभारी हूँ शान्ति जी
Deleteआपकी ये रचना पहले पढ चुका हूं। आज तो अपील करने आया हूं।
ReplyDeleteनोट : आमतौर पर मैं अपने लेख पढ़ने के लिए आग्रह नहीं करता हूं, लेकिन आज इसलिए कर रहा हूं, ये बात आपको जाननी चाहिए। मेरे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए । धोनी पर क्यों खामोश है मीडिया !
लिंक: http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/blog-post.html?showComment=1370150129478#c4868065043474768765
महेंद्र जी अवश्य ,अवश्य .....
Deleteकुछ देर से मिला आपका सन्देश
सुंदर रचना दरख्तों के दर्द को दर्शाते.
ReplyDeleteरचना जी आभार
Deleteबहुत-बहुत सुंदर रचना ....
ReplyDeleteउपासना जी आभार आपका
Deletebahut sundar..
ReplyDeleteआभार स्वयंवरा जी
Deleteश्री राम जी आभारी हूँ
ReplyDeletebehad khoobsurat rachna ..
ReplyDeleteआभार शोभाजी
Deleteस्वागत है मेरे इस घर में
पलते बढ़ते फलते फूलते सभी अच्छे लगते है ..यह बात सब समझ ले तो कितना सुन्दर होता ...प्रकृति के दर्द को सुन्दर शब्दों में ढाला है आपने ....बहुत सुन्दर सार्थक रचना
ReplyDeletekya kahoon......... bahut hi sateek shabdo me ukera hai...
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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