Friday, 3 May 2013

समय का चक्र-



समय का चक्र निर्विघ्न घूमता है , 
क्षण क्या युग भी उसके कदम चूमता है 
गिन नहीं सकते थे चाह थी तारे गिने 
घटते बढ़ते चाँद से कभी तो मिलें 
चाँद कहीं खोगया ना किसी को दीखता  है 
नीला तारों भरा आसमान हर कोई खोजता है 
बचपन हरे -भरे खेतों में खेला था 
हरियाली का साम्राज्य चतुर्दिक फैला था 
बेबस धरा का स्वर पल -पल भीगता है 
कृतघ्न , कृतज्ञता को पैरों तले रौंदता है 
 पथ के दोनों ओर होती थी वृक्षों की कतार
 सहमी डरी लगती थी धूप और फुहार 
कंक्रीट के जंगल में मानव लक्ष्य ढूंढता है 
जीवन यापन का प्रश्न दिलो दिमाग में घूमता है 
सावन कारे बदरा को लुभाता था 
भादों आया फिर रवि भी मुंह  चुराता था 
मोर की  पीहूं-पीहूं , मेढक का टर्राना
आज भी स्मृति में कहीं गूंजता है 

समय का चक्र निर्विघ्न घूमता है , 
क्षण क्या युग भी उसके कदम चूमता है 


9 comments:

  1. आज की ब्लॉग बुलेटिन तुम मानो न मानो ... सरबजीत शहीद हुआ है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. शिवम् मिश्रा जी मेरी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार

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  3. समय अपनी गति से ही भागता है और मौसम का चक्र उसके साथ ,बढ़िया प्रस्तुति
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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  4. समय की सार्थकता प्रदान करती
    चिंतनपूर्ण रचना
    बधाई


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  5. सभी घुमते हैं इसके साथ ...
    सार्थक चिंतन ...

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  6. आभार महेंद्र जी

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