रेशम का नन्हा सा धागा , नेह , मेह बरसाए
अक्षत ,रोली का थाल सजाये ,बहन खड़ी इतराए
अक्षत ,रोली का थाल सजाये ,बहन खड़ी इतराए
मस्तक पर नन्हा सा टीका ,भाई का मान बढाए
धागा भी सज उठा कलाई पर ,अंतर भीगा जाए
बचपन की स्म्रतियां मन में ,नयी उमंग जगाएं
उस अंगना की बिसरी यादें ,दिल - दिमाग पर छायें
घेवर की मिठास घुल गयी ,भाई बहन के प्यार में
भावनाओं का वेग उमड़ता अपने इस त्यौहार में
सम्मान बनाए इसका रखना ,स्नेह सूत्र को पकडे रखना
ये रिश्ता मज़बूत बनाए ,आओ भाई को गले लगाएं ........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (14-08-2013) को 'आज़ादी की कहानी' : चर्चा मंच १३३७....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही स्नेहमयी रचना
ReplyDeleteबचपन की स्म्रतियां मन में ,नयी उमंग जगाएं
ReplyDeleteउस अंगना की बिसरी यादें ,दिल - दिमाग पर छायें ..
सुन्दर भावमय रचना ... राखी के त्यौहार का सात्विक आनंद आ गया ..