कोरोना काल में श्रमिक पलायन !!
इस वैश्विक संकट से भारत की एक
बहुत गम्भीर समस्या है
लाखों लोग घर पहुंचने की चाह में सड़कों पर हैं ।
सर पर सामान, मन में आजीविका का तनाव और कंधों पर नौनिहाल ,भूख - प्यास से बेहाल पग-पग गन्तव्य की ओर बढते दृश्य बड़े ही हृदय विदारक हैं
आधार हैं ये हमारे देश का
कहीं थोड़ा बहुत गलती भी है
बावजूद इसके विचारणीय ये है कि पहला लॉकडाउन घोषित होते ही ये श्रमिक सड़कों पर कैसे आ गए ?
रात 8 बजे घोषणा हुई और 12 बजे कैसे खाने के लाले पड़ गए ?
लगा कुछ सरकार तो उन्हें वापस भेजने पर तुल गयीं कि भेजों इन्हें वापस
औपचारिक घोषणा कर उन्हें भेजा गया
क्या राज्य सरकार का कोई दायित्व नही बनता ?
क्या उन्हें विश्वास में नही ले सकते थे कि आप लोग ठहरिए
विश्वास बनाते तो वो रुक सकते थे
कहा जाता मत जाइए , आपके खाने पीने की व्यवस्था होगी
फिर भी लोगों को घर जाना था, इस आपदा में उन्हें जन्मभूमि की याद सता रही हो , तो राज्य सरकार उन्हें अपने स्तर पर भी भेज सकती थीं
वैसे अगर राज्य सरकारों की ओर से उनके खाने रहने का कोई प्रबंध हो जाता तो पलायन इतनी मात्रा में न होता
सच तो ये है यहां राज्य व्यवस्था और प्रशासन फेल हो गया
अब जब कि राजिस्ट्रेश की व्यवस्था है तो क्यों नही हो पा रहे रजिस्ट्रेशन
और अगर नही हो पा रहे तो सहायता कौन करेगा ?
जिनके रजिस्ट्रेशन ऑन लाइन नही हो पाए उनके नाम पते लिख कर भेजा जा सकता था
क्यों नही प्रशासन आगे बढ़ सहायता करता
किसका दायित्व बनता है भई कि धरातल पर सहायक बने
जहां कुछ राज्य अच्छा सहयोग कर रहे हैं तो
कुछ राज्य तो चाहते ही नही कि इन भाइयों की घर वापसी हो
हाँ राजनीति खूब जम कर हो रही है
राज्य और प्रशासन अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से बच नही सकते
अपना घर सम्भालने की पहली ज़िम्मेदारी उन्ही की है
बात ये है कि इतने सालों में तंत्र सड़ चुका है
6 साल की बदली सरकार के साथ प्रशासन की कर्तव्यनिष्ठा या सोच कितने प्रतिशत बदली कह नही सकते
जो अपना कर्तव्य पूरा कर भी रहे हैं तो उनकी स्थिति घुन के समान है
अब बात करें कैमरे और माइक लिए पत्रकार भाइयों की , दो-चार को छोड़ दें तो अधिकतर कोई सहायता नही करते , कोइ मार्ग दर्शन नही करते
बस क्यों, कैसे , कहाँ , कब ??
उनका हिस्सा इतना ही है
उन्हें भी बस चैनल चलाना है
ये सामूहिक कर्तव्य है
केंद्र को सख्ती से निपटना चाहिए ऐसी राज्य सरकारों से
कुछ लोगों का कार्य सराहनीय है जो आगे बढ़े हैं उनका दुख-दर्द बांटने को
कल इंदौर की बहुत अच्छी तस्वीर देखीं लोग बाईपास पर सेवा में जुटे थे
क्या हर जगह ऐसा नही हो सकता कि इनके खाने पीने का कोई प्रबंध हाईवेज़ पर हो सके ?
दूसरे कम से कम इन्हें अब रोका न जाये , निकल गए हैं तो निकल जाने दिया जाए
दृश्य बेहद हिला देने वाले हैं
निकल पड़े हैं लेकिन अपने गृह राज्य में घुस भी पाएंगे
इसमें भी सन्देह है
ये काल एक दिन अतीत बन जायेगा लेकिन बहुत से लोगों को दर्द दे जाएगा जो शायद समय समय पर टीसता भी रहेगा
कुछ न कर सकने की पीड़ा के साथ उनके दर्द में सहभागी हूँ
ईश्वर उन्हें हिम्मत दे और उन्हें मजबूत बनाएं
सद्बुद्धि उन्हें देना जो आज भी राजनीति में लिप्त हैं
🙏🙏🙏🙏
वाकई दुखद स्थिति है।
ReplyDeleteलाकडाउन करने में यदि 4 घंटे का नहीं बल्कि 4 दिन का समय दिया होता तो यह हालत नहीं होती।