सुख और दुःख धरती के, ध्रुव की तरह होते हैं
लेकिन प्रतिक्रया में दोनों के, आंसू ही होते हैं
एहसास में दर्द के, झलकते हैं हैं आंसू
आवेग में ख़ुशी के ,टपकते हैं आंसू
बहुमूल्य है वो बूँद, जो आँखों में लरजती है
टपके ना जब तक ,कीमत पता नहीं चलती है
भावनाओ का वेग जब, अश्कों में बदल जाता है
उर का वो तूफ़ान , नैनों से निकल जाता है
गिरने वाला हर अश्क ,एक जैसा नज़र आता है
सुख - दुःख का रिश्ता, इन अश्कों से बांध जाता है
क्या है फर्क ??? और किस से इसका नाता है
आँख और अश्कों के सिवा कोई नहीं जान पाता है
सच्चा हम दर्द ही, ये जान पाता है कि
टपकी बूँद का किससे (दुःख या सुख ) ,, नज़दीक का नाता है
सादर आभार मयंक जी .........:)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteराजेंद्र जी हार्दिक धन्यवाद ...........
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांति जी ......
Deleteसुख और दुःख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है ..बहुत सही बात की आपने
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उपासना जी ......
Deleteसच आँसू जब तक आँखों के अंदर रहते हैं तभी तक आँसू है ,बहने के बाद तो मोती बन जाते हैं .......
ReplyDeleteसच कहा आपने निवेदिता जी हार्दिक आभार ......
Deleteसच कहा है ... ये बात तो बस आंसू ही समझ सकते हैं ... क्यों निकलते हैं ...
ReplyDeleteसम भाव रखते हैं आंसू ....
आभार दिगंबर जी
Deletebahut sunder satik perstuti
ReplyDeleteआभार गीता जी
Deleteबहुत गहन एवं सशक्त .....!!लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संजय जी
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