ना चिड़िया का चहचहाना ,ना कांव -कांव काग का ,
अंत हो चला है शहरों में पंछियों के राग का
महानगर तो इस दौड़ में बहुत आगे हैं ,
बुजर्ग भी भूल गए हैं कि कभी मुर्गे की बांग पर भी जागे हैं
अंत हो चला है शहरों में पंछियों के राग का
महानगर तो इस दौड़ में बहुत आगे हैं ,
बुजर्ग भी भूल गए हैं कि कभी मुर्गे की बांग पर भी जागे हैं
घडी के अलार्म में बांग कहीं खो गयी है ,
अब तो यही आवाज़ अपनी साथी हो गयी है
अब तो यही आवाज़ अपनी साथी हो गयी है
याद है पक्षियों का शाखों पर मंडराना ,
अपनी सुर ताल में गाना ,गुनगुनाना
अपनी सुर ताल में गाना ,गुनगुनाना
सांझ होने का एक अदभुत एहसास पाया है ,
कई आकृतियों में गगन में उड़ता पंछियों का झुण्ड आज भी दिमाग पर छाया है
कई आकृतियों में गगन में उड़ता पंछियों का झुण्ड आज भी दिमाग पर छाया है
कलरव करता ,बसेरों की ओर बढ़ता ,
पंछियों का झुण्ड आसमान में होता था
पंछियों का झुण्ड आसमान में होता था
सूर्य को विदा देता सांझ का आगाज़ ,
बड़ा ही मनोरम होता था
बड़ा ही मनोरम होता था
चूल्हे से उठती सुगंध ,नथुनों में समाती थी ,
स्याह परिधान में लपटी रजनी द्वार पर नज़र आती थी
स्याह परिधान में लपटी रजनी द्वार पर नज़र आती थी
दिन भर के थके पथिक बाहँ पसार कर स्वागत करते थे ,
निद्रा के आगोश में मीठे सपने बुनते थे
निद्रा के आगोश में मीठे सपने बुनते थे
आज महा नगर जीवन की आपा -धापी में , सुबह शाम भूल गया है ,
सपने की बिसात क्या !! निद्रा से भी विमुख हो गया है
सपने की बिसात क्या !! निद्रा से भी विमुख हो गया है
ये बड़े -बड़े शहर रात भर जागते हैं ,
मशीन बन चुके मनुष्य सड़कों पर भागते हैं
मशीन बन चुके मनुष्य सड़कों पर भागते हैं
वाहनों की चिल्ल -पों ने बघिर कर दिया है ,
स्वच्छ ,नीले आसमान को भी झुलसा कर स्याह कर दिया है
स्वच्छ ,नीले आसमान को भी झुलसा कर स्याह कर दिया है
तारों भरा थाल केवल स्वप्न बन गया है ,
सर पर धवल चांदनी नहीं काला तम्बू तन गया है
सर पर धवल चांदनी नहीं काला तम्बू तन गया है
चन्दा मामा भी अब नज़रें चुराते है ,
बच्चों को भी वो अब याद नहीं आते हैं
बच्चों को भी वो अब याद नहीं आते हैं
याद नहीं कब चैन की नींद आई थी ,
मीठे स्वप्नों की तृप्ति कब मुख पर छाई थी
मीठे स्वप्नों की तृप्ति कब मुख पर छाई थी
स्वप्न भी मीठे नहीं, दुखदायी होते हैं ,
सुबह की चिंता में पलक बड़ी मुश्किल से बंद होते हैं
सुबह की चिंता में पलक बड़ी मुश्किल से बंद होते हैं
ना सुकून है दिन में ना रात में आराम ,
जीवन की आपा धापी ने मेरे छीन लिए सुबह शाम
जीवन की आपा धापी ने मेरे छीन लिए सुबह शाम
चक्र है समय का ,परिवर्तन स्रष्टि का नियम ,
बदलना है साथ इसके रख कर संयम
बदलना है साथ इसके रख कर संयम
Vo saree bate yaad. Deeladi jo gye the bhul bahut achchi lagi sach
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शान्ति जी
Deleteमहा नगर क्या यहाँ छोटे शहरों का भी यही हाल है सब कुछ मशीनी होता जा रहा है
ReplyDeleteजी उपासना जी सही कहा आपने ...........
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ReplyDeleteAaj ke Yug ka Kadva Sach h es kavita m ...
जी मंजुल जी .....
Deletesahi he murge ki bang or gay,{ kutte to kher pale huve mil jate he }chidiya kbuter suraj chand ki roshni sab gayab ho gye he simt gye flets me
ReplyDeleteजी गीता जी ......सही कहा आपने ..........आभार आपकी टिप्पणी के लिए
ReplyDeleteशब्द शब्द अथाह सच्चाई लिए
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