महिला दिवस पर
आशाओँ के दीप जले हैँ ,
आगे-आगे कदम बढ़ेँ हैँ ।
कहीँ गर्व से ऊँचा मस्तक,
कहीँ झिड़कियाँ खूब पड़ी हैँ।
कहीँ आज भी रौँदा जाता,
निर्ममता को पूजा जाता।
कसौटियाँ हर पल खड़ी है ,
ज़िँदगी भी बहुत बड़ी हैँ।
चलो आज फिर सर उठायेँ,
शक्ति अपनी और बढ़ायेँ।
मन से सबका कर सम्मान,
अपना हिस्सा भी हम पायेँ।
कुछ है पाया, बहुत है पाना,
आगे दूर अभी है जाना।
समाज है अपनी ज़िम्मेदारी
आधी अपनी भागीदारी।
इसे कभी भी भूल न जायेँ,
मिल हम महिला दिवस मनायेँ।
सभी सखियोँ को शुभकामनायेँ :-)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसच है
जिम्मेदारी आधी है।
इसलिए पुरुष विरोधी भावना ख़तरनाक हो सकती है।
नई पोस्ट - कविता २
वाह
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