बाँध पाँव में नन्ही पायल ,रुनझुन -रुनझुन करती थी
इधर -उधर किलकारी भरती ,सबको प्यारी लगती थी
रोज़ सुबह सुहानी होती , हर दोपहर सुनहरी थी
हर सांझ को संग नन्ही के ,माँ भी गुनगुन करती थी |
दो-चार समस्या से होता था ,जीना तो कुछ था दुश्वार
नन्ही रुनझुन में खुशिया पा , हंसी-ख़ुशी रहता परिवार
रोज़ नए सपने बुनते थे ,हर तार में कई -कई रंग थे
उस नन्हे मुख की शोभा को ,देख-देख कर वो जीते थे
इक दिन सुबह घटा घिर आयीं ,काला अंधियारा ले आयीं
मुरझाई फिर धूप सुनहरी ,हर मुख पर मलिनता छाई
माँ मन ही मन कुछ घबराई ,भागी -भागी बाहर आई
आसमान में काला साया ,देख उसे बस मूर्छा आई
रंग पानी में धुल गए थे रंगहीन धागे बिखरे थे
नन्ही पायल टूट गयी थी
नन्ही पायल की रुनझुन को जाने किसकी नज़र लगी थी ..........
इधर -उधर किलकारी भरती ,सबको प्यारी लगती थी
रोज़ सुबह सुहानी होती , हर दोपहर सुनहरी थी
हर सांझ को संग नन्ही के ,माँ भी गुनगुन करती थी |
दो-चार समस्या से होता था ,जीना तो कुछ था दुश्वार
नन्ही रुनझुन में खुशिया पा , हंसी-ख़ुशी रहता परिवार
रोज़ नए सपने बुनते थे ,हर तार में कई -कई रंग थे
उस नन्हे मुख की शोभा को ,देख-देख कर वो जीते थे
इक दिन सुबह घटा घिर आयीं ,काला अंधियारा ले आयीं
मुरझाई फिर धूप सुनहरी ,हर मुख पर मलिनता छाई
माँ मन ही मन कुछ घबराई ,भागी -भागी बाहर आई
आसमान में काला साया ,देख उसे बस मूर्छा आई
रंग पानी में धुल गए थे रंगहीन धागे बिखरे थे
नन्ही पायल टूट गयी थी
नन्ही पायल की रुनझुन को जाने किसकी नज़र लगी थी ..........
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्रीजी
Deleteशब्द नहीं मिले
ReplyDeleteगले रुंध गये
विभा जी समय कितना खराब आ गया है
Deleteसब बच्चियां सुरक्षित हों
हंसती खिलखिलाती रहे ............आभार आपके आगमन का
itna marm bhar diya hai aapne is kavita main... kuchh kahne ke liye shabd nahi hain mere paas.... bas sabhi chhote bachchon ki chinta lagi rahti hai ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteसही कह रही है सब बच्चों का बहुत ध्यान रखना होगा ..........मेरा मन कई दिन से बहुत परेशान है ........................
Deleteदुआ है कि ये समय जरा जल्दी ही गुजर जाए ....
ReplyDeleteजी निवेदिता जी .........आभार आपका .......
Deleteमर्मस्पर्शी पंक्तियाँ....
ReplyDeleteमोनिका जी हार्दिक धन्यवाद ........
Deleteसटीक रचना .हर माँ यह सिख लें की बेटा,बेटी में अंतर करना महा पाप है परिवेश पहले घर में परिवर्तन करने की आवश्यकता है तभी लड़के लड़कियों को इज्जत देंगे
ReplyDeletelatest post सजा कैसा हो ?
latest post तुम अनन्त
l
प्रसाद जी .......सच कहा आपने ..........
Deleteहार्दिक आभार आपका
शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन ......आभारी हूँ आपकी ..सादर
ReplyDeletenajer lagi vahshiyo ki darindo ki ,
ReplyDeleteसही कहा गीता जी आपने ............
Deleteबहुत सही और सटीक रचना , कोई ऐसे जुल्म करने का सोच भी कैसे सकता है .. बेहद मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteसच पता नहीं कैसे लोग बेरहम हो जाते हैं .......
Delete.........हार्दिक धन्यवाद उपासना जी .......
मार्मिक;दुखद
ReplyDeleteअंजू जी आज की परिस्थितियां जटिल हो चली हैं नारी के लिए ........
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