जब स्रष्टि की रचना हुई थी तो किसी ने पृथ्वी की आज की भयंकर स्थिति के बारे में सोचा भी नहीं होगा.
ईश्वर का नियम है ...रचना और विनाश
..........सृष्टि का विनाश भी निश्चित है |
और शायद अंत का प्रारम्भ हो चुका है
आज प्रथ्वी खून के आंसू रो रही है...........हर कोई निराश है ,
मानव से सब इतना निराश है कि अपनी व्यथा किस से कहे ,कैसे कहे...........?..
एक दिन प्रकृति की सभा हुई और सबने अपना-अपना दुखड़ा रोया...........
सबसे पहले आई पृथ्वी.........
पृथ्वी------हरी -भरी सी मैं थी धरती ,जल पवन भी थे भरपूर
लोगो में जो स्वार्थ बढा तो ,जीवन से मुझे कर दिया दूर
अब मेरा ये हाल तो देखो ,बर्बादी की चाल तो देखो.......:(-
प्रकृति -----झरने ,नदिया ,हरे पेड़ों से ,स्वछ हवा के म्रदु झोंकों से
सराबोर मै रहती थी ,खुशियाँ ही खुशियाँ जीवन में
कितने सुख में रहती थी
झरने नदियों का संगीत ,पेड़ों की वो हरियाली
स्वच्छ हवा के शीतल झोंके ,कुछ नहीं अब सब है खाली
वृक्ष -----हाल किया क्या मानव तूने , क्यों सब कुछ बिसराया
उपभोग किया भरपूर हमारा,, फिर हमको ठुकराया
मीठे फल और फूल पत्तियां ,हमसे ली सौगात
पीठ दिखाई अब तुमने और पहुंचाया आघात -
वर्षा -----ठीक कहा भैया ये तूने ,तुझ पर थी मैं निर्भर
जब से हाल हुआ ये तेरा जीना हो गया दुर्भर
अब तो भैया चहुँ भी तो कभी -कभी ही पडूँ दिखाई
रोकर अपने दिन मैं काटू, किस से अपने दुखड़ा बांटू-............
ये सभा चल ही रही थी कि , कुछ अवाछित तत्व आ धमके और वो भी अपनी गाथा गाने लगे......और मज़ाक बनाने लगे ......सबसे पहले प्रदूषण आया ........
और बोला........
प्रदूषण....हाहा ...हाहा. .....हाहा....हाहा ........मैं हूँ प्राणी कुछ नया .
मेरा डेरा नया बसा ...लेकिन मैंने इस धरती को
अपने कब्ज़े में किया..........................
अपना -अपना भाग्य भैया अपनी -अपनी माया ..............................
सबने अपना दुखड़ा रोया ,अपना राग यहाँ गाया ..............................
लेकिन मैं तो यहाँ बहुत खुश हूँ...........हाहा ...हाहा ....
धुँआ ------ए भाई क्यों इतना खुश होते हो ,,
मैंने हमेशा तुम्हारा हमेशा साथ निभाया है
तभी तुमने दुनिया को इतना सताया है ,
तभी तो तुमने दुनिया को इतना सताया है....
सी ऍफ़ सी (क्लोरो फ्लोरो कार्बोन )-------अरे रे .........अरे रे ...सुनो सुनो
बहुत दुष्ट हूँ मैं भी भाई ,यही बात मैं कहने आई
यही बात मैं कहने आई, और तीनो मिल कर नाचने लगते हैं
सूरज भी अपनी लाचारी व्यक्त किये बिना नहीं रह पाता.............
सूरज ----वैसे तो मैं जीवन दाता अँधेरा मुझको नहीं है भाता .....................
प्रदूषण ने मजबूर किया है कष्ट तभी मैंने दिया है .
अवांछित तत्वों के सामने सभी लाचार और मजबूर नज़र आ रहे हैं...........
और मानव को कोस रहे हैं................
काश मानव इतना लालची और स्वार्थी ना हुआ होता ..........................
तो शायद प्रथ्वी कि ये दुर्दशा ना हुई होती.............
कुछ बच्चे आते हैं और प्राण लेते हैं हम कुछ बातों का ध्यान रखेंगे .........लोगो को जागरूक बनायेंगे और अपनी पृथ्वी को बचायेंगे ............
wah bachchon ko prakriti aur prithvi ke sanrakhshan ka mahatv batane ka adbhut tareeka
ReplyDeleteबच्चों को पता होना ही चाहिए ..........जैसे भी समझ आये .बताना चाहिए उन्हें
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरे भाव लिए रचना .....
ReplyDeleteआभार उपासना सखी ...........
Deleteहार्दिक आभार शास्त्री जी .........आपकी उपस्थिति उत्साह बढ़ाती है ........
ReplyDeleteआप को भी धरती दिवस पर बधाई ..............