Thursday 13 June 2013

बरखा रानी करे निहाल ----------

1-बार -बार मेघा गरजाए 
धरा पुलक -पुलक हुई जाए 

2-अंधियारा छाया है दिन में 
 चमके बिजली दूर गगन में 

3-घुमड़ -घुमड़ कर मेघा आये 
पिहू पपीहा शोर मचाये 

४-पल-पल धरती दरक रही है 
बिन पानी के सिसक रही है 

५-गुनगुनाती मेघ मल्हार 
बरखा रानी खड़ी है द्वार 

६-झमझमाझम झम-झम , झम-झम 
भीग रहा है हर अंतर मन 

७-रिमझिम -रिमझिम बरस रहा है 
मन भी संग -संग भीग रहा है 

८-ताप सहे हो गए बेहाल 
बरखा रानी करे निहाल ....................

9 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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    1. धन्यवाद महेंद्र जी

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  2. गुनगुनाती मेघ मल्हार
    बरखा रानी खड़ी है द्वार ..
    अपने स्वागत के लिए खड़ी है ... खुशहाली ले के जो आती है ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर जी

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  3. बहुत प्यारी कविता

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    1. धन्यवाद चैतन्य जी

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  4. धन्यवाद प्रसन्न जी

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