जीवन ईश्वर का वरदान , हर श्वास है कर्ज़दार
प्रकृति हमारी पालन हार , क्यों ना माने उसका आभार
प्रकृति ने मानव जाति को अमृत घूँट - घूँट दिया है
कृतज्ञ कोई नज़र ना आता कृतघ्नता से जुड़ा है नाता
हरियाली को दूर भगा कर , कंक्रीट ने पौध लगाई .
शोक में डूबी हरियाली अब काले साए सी है घबराई
पंछी कलरव की गयी बहार , पंछी नज़र ना आते द्ववार
शुद्ध पवन की गयी बहार , उमस घुटन हर पल तैयार |
टिम- टिम जुगनू नज़र ना आते , बचपन में थे बहुत वो भाते
इन्द्र धनुष भी विलुप्त हो गया , प्रकृति के रंग संग ले गया
इन्द्र देव क्रोधित हुए हैं , सावन भादों शुष्क हुए हैं
मौसम समय पर नज़र चुराते , प्रकृति के तांडव में खो जाते |
क्या खोया ,क्या नहीं है पास , आज करे यदि ये एहसास
अनमोल रत्न था प्यारा -प्यारा , प्रकृति का हंसता नज़ारा
No comments:
Post a Comment
आपके आगमन पर आपका स्वागत है .................
प्रतीक्षा है आपके अमूल्य विचारों की .
कृपया अपनी प्रतिक्रया अवश्य लिखिए