Saturday 15 October 2011

प्रकृति हमसे रूठ गयी है ..



जीवन ईश्वर का वरदान , हर श्वास है कर्ज़दार 
प्रकृति हमारी पालन हार  , क्यों ना माने उसका आभार 
प्रकृति ने मानव जाति को  अमृत  घूँट - घूँट दिया है 
 कृतज्ञ कोई नज़र ना आता कृतघ्नता से जुड़ा है नाता 
हरियाली को दूर भगा कर , कंक्रीट ने पौध लगाई .
शोक में डूबी हरियाली अब काले साए सी है घबराई 
पंछी कलरव की गयी बहार ,  पंछी नज़र ना आते द्ववार 
शुद्ध पवन की गयी बहार , उमस घुटन हर पल तैयार |
 टिम- टिम जुगनू नज़र ना आते , बचपन में थे बहुत वो भाते 
इन्द्र धनुष भी विलुप्त हो गया , प्रकृति के रंग संग  ले गया
इन्द्र देव क्रोधित हुए हैं ,  सावन भादों शुष्क हुए हैं 
मौसम समय पर नज़र चुराते , प्रकृति के तांडव में खो जाते |
क्या खोया ,क्या नहीं है पास ,  आज करे यदि ये एहसास 
अनमोल रत्न था प्यारा -प्यारा , प्रकृति का हंसता नज़ारा 

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