Sunday 30 June 2013

तम की चादर


तम की चादर ओढ़ सांझ ने ,
धीरे-धीरे पाँव पसारा
आँख  मिचौली खेल ज़रा सी ,,
तम उर में छिप गया उजाला 
पलकों में सिमटे ख्वाबों ने , 
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई 
अभिनन्दन करके निद्रा का, 
सीमा  अपनी और बढाई
समां गए सपने अंखियों में, 
पलक लगे ढलके-ढलके
लोरी भी गा रही ख़ामोशी,, 
सहलाती हलके-हलके