Sunday, 21 August 2016

एक सुझाव

'अगली बार मिलते हैं टोक्यो ओलिम्पिक में' इस वादे के साथ ओलिम्पिक का महाकुम्भ समाप्त और रियो से विदा हुए |
117 प्रतियोगी, दो पदक और 67 वाँ स्थान !!! किसी की कोई आलोचना नही न इस लायक हूँ में लेकिन एक सुझाव कि खिलाड़ियों से आशा रखे तो उन्हें सुविधाएं भी दी जाए उन्हें आज से ही चार साल बाद के लिए तैयार किया जाए खेल में मर रही खेल भावना को जीवित रखने के उपाय किये जाए ,सम्बंधित लोग कर सकते हैं पैसा भी मुझे नही लगता कोई बड़ी समस्या है और सबसे बड़ी बात अगर अधिकारी
अपने टिकट से पहले खिलाड़ी, कोच, फिजियो आदि का टिकट कटाये तो हर भारतीय आभारी होगा :)
 
जो खिलाड़ी ओलिम्पिक जैसी प्रतियोगिता में जाने का अधिकारी हो उसका परिश्रम ,लगन किसी भी मायने में कम नही हो सकता |
परिश्रम से खेलना अपना सौ प्रतिशत देना उनका काम ,जीतना उनकी आशा और परिणाम स्वीकार करना विनम्रता यही है एक खिलाड़ी की विशेषता :)
जीतने वाले खिलाड़ियों को मेरी हार्दिक बधाई लेकिन भाग लेने वाले अन्य खिलाड़ियों ने भी भारतीय ध्वज की छत्र-छाया में खूब परिश्रम दिखाया वो भी बधाई के पात्र हैं :)
सलाम सिर्फ उगते सूरज को नही , एक सलाम उन्हें भी किया जाए जो अपनी चमक दिखा अस्त हो गए जो
बेरोज़गारी के चलते कठिनता से जीवनयापन कर रहे हैं | कोई उपदेश या आलोचना नही सिर्फ 'मन की बात':-D

एक तथ्य

22 अगस्त 1921 गांधीजी ने विदेशी वस्त्रो की होली जलाई थी लेकिन एक तथ्य के अनुसार ये पावन कार्य 1906 में स्वदेशी का नारा देकर वीर सावरकर ने किया था उन्होंने सबसे पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी |गांधी बाबा ने पुनरावृत्ति अवश्य की