Tuesday, 30 April 2013

देश का आधार

मजदूर दिवस पर विशेष .......

सड़क किनारे बसे बसेरे ,
चूल्हे जलते शाम -सवेरे 
कभी धूप में चलें हथौडे , 
कुदाल -फावड़े ने कभी घेरे 
शीत-लहर जब देती दस्तक , 
उंचा रहता तब भी मस्तक 
झुग्गियों की दिखती कतार , 
प्रशासन पर करे प्रहार 
हाथ हथौड़े आँख अंगार , 
अस्त्र -शस्त्र ले रहे तैयार 
कभी कुल्हाड़ी लिखे तहरीर , 
कभी सोयी लगती तकदीर 
खेत-खलिहान को कभी सहलाते , 
कभी कृषक बन कनक उगाते 
चीर कभी धरा का सीना बाहर हरियाली ले आते 
कंक्रीट के जंगल में नए मोर्चे नयी है जंग,  
रंगहीन कुछ स्वप्न हो जाते .कुछ में भर जाते हैं रंग 
दस्तावेज़ ईट-पत्थर के यूँही नहीं लिख जाते 
रण-बाँकुरे खून-पसीने से अक्षर चमकाते 
स्थान बनाए रखने को अपना , लड़नी पड़ती जंग 
उड़ान भरेंगे संग सपनो के , हो ना जाए भंग 
भूल गए कर्णधार इन्हें , नहीं देते सम्मान 
आधार यही मज़बूत देश के ,इनमें बसते प्राण