---हाँ ऐसी ही थी 'माँ '...
कीर्तन,गीत-संगीत यही एक दुनिया थी
सबके लिए एक लक्ष्मण रेखा थी और सबको पालन करना होता था
अनिच्छा का भी कोई प्रश्न नहीं था ......
समय ही ऐसा था,सब इच्छा से ही होता था
सबके लिए एक लक्ष्मण रेखा थी और सबको पालन करना होता था
अनिच्छा का भी कोई प्रश्न नहीं था ......
समय ही ऐसा था,सब इच्छा से ही होता था
कहानी है एक लड़की की
'माँ' की ...!!!!!!!
'माँ' की ...!!!!!!!
आठ भाई -बहनों का भरा--पूरा खुशहाल एवं संपन्न परिवार
तीन भाई और एक बहन से छोटी पांचवें नंबर की संतान बेहद खूबसूरत , तीखा नाक -नक्श , गोरा रंग ,प्रतिभा शाली .!!
कंठ में सरस्वती का वास ..........
वाद्य यन्त्र ..जैसे हारमोनियम , तबला , ढोलक में पारंगत ,नृत्य के क्या कहने ..........
पाक कला में भी निपुण ....
ये कोई अतिश्योक्ति नहीं
सत्य वचन .
तीन भाई और एक बहन से छोटी पांचवें नंबर की संतान बेहद खूबसूरत , तीखा नाक -नक्श , गोरा रंग ,प्रतिभा शाली .!!
कंठ में सरस्वती का वास ..........
वाद्य यन्त्र ..जैसे हारमोनियम , तबला , ढोलक में पारंगत ,नृत्य के क्या कहने ..........
पाक कला में भी निपुण ....
ये कोई अतिश्योक्ति नहीं
सत्य वचन .
ईश्वर ने सब दिया था ,पढने का भी बड़ा शौक था ...
बड़ी बहन की शादी के बाद माता की सेहत ठीक ना रहने के कारण.पढ़ाई रोक दी गयी थी उस समय ये कोई नई बात नहीं थी , बड़ा आम था सब कुछ
घर पर ही रह कर पढने कहा गया
मन तो नहीं था लेकिन विरोध नहीं कर सकती थी
वो समय ही और था
बड़ी बहन की शादी के बाद माता की सेहत ठीक ना रहने के कारण.पढ़ाई रोक दी गयी थी उस समय ये कोई नई बात नहीं थी , बड़ा आम था सब कुछ
घर पर ही रह कर पढने कहा गया
मन तो नहीं था लेकिन विरोध नहीं कर सकती थी
वो समय ही और था
कक्षा आठ तक घर पर रह कर पढ़ाई की लेकिन जूनून ऐसा था .
भाई -बहन सबकी किताबों का एक -एक अक्षर चट कर जाती, चाहे कोई भी विषय हो
भाई -बहन सबकी किताबों का एक -एक अक्षर चट कर जाती, चाहे कोई भी विषय हो
फिर समय बीता
कुछ समय बाद एक सरकारी अफसर के साथ शादी हुई जो स्वयं पुस्तकों के शौक़ीन थे
ईश्वर का शुक्रिया किया कि चलो साथ मिला तो एक
बुद्धिजीवी का !!
नायब तहसीलदार के पद पर आसीन मेरे पिता पुस्तक प्रेमी थे , नियमित साप्ताहिक और मासिक पुस्तकें, पत्रिकाएं घर की शोभा बनते थे
इसी पढने के शौक ने ज्ञान भी बढाया .......
नयी-नई जानकारी दी ....
कुछ समय बाद एक सरकारी अफसर के साथ शादी हुई जो स्वयं पुस्तकों के शौक़ीन थे
ईश्वर का शुक्रिया किया कि चलो साथ मिला तो एक
बुद्धिजीवी का !!
नायब तहसीलदार के पद पर आसीन मेरे पिता पुस्तक प्रेमी थे , नियमित साप्ताहिक और मासिक पुस्तकें, पत्रिकाएं घर की शोभा बनते थे
इसी पढने के शौक ने ज्ञान भी बढाया .......
नयी-नई जानकारी दी ....
अपनी संतानों को भी यही सब विरासत में दिया
जिस बात के लिए बच्चे बहस करते या परेशान होते उसे बड़ी ही सहजता से बता देती किसी शब्द का अर्थ हो या किसी व्यक्ति विशेष की जानकारी लेनी हो उनके लिए बाएं हाथ का काम था
कक्षा दस भी पास नहीं कर पायीं थी लेकिन पढने की ललक ने ज्ञान अर्जित कर ही लिया था
अच्छा साहित्य ,अच्छी पुस्तक यही साथी बने रहे .
और बच्चों के दोस्त आश्चर्य व्यक्त करते .....
'तेरी मम्मी ने बताया ??? अच्छा' 🤔🤔.!!!!....
जिस बात के लिए बच्चे बहस करते या परेशान होते उसे बड़ी ही सहजता से बता देती किसी शब्द का अर्थ हो या किसी व्यक्ति विशेष की जानकारी लेनी हो उनके लिए बाएं हाथ का काम था
कक्षा दस भी पास नहीं कर पायीं थी लेकिन पढने की ललक ने ज्ञान अर्जित कर ही लिया था
अच्छा साहित्य ,अच्छी पुस्तक यही साथी बने रहे .
और बच्चों के दोस्त आश्चर्य व्यक्त करते .....
'तेरी मम्मी ने बताया ??? अच्छा' 🤔🤔.!!!!....
बनाव-श्रंगार से भी कोई लगाव नही था बेहद साधारण और सौम्य थीं वो
कोई भी अवसर होता तो सिर्फ अपनी सिल्क की क्रीम कलर की साडी और हार पहन लेती अब उस छवि का क्या वर्णन करूँ में
एक दम नैसर्गिक सौन्दर्य था उनका
कोई भी अवसर होता तो सिर्फ अपनी सिल्क की क्रीम कलर की साडी और हार पहन लेती अब उस छवि का क्या वर्णन करूँ में
एक दम नैसर्गिक सौन्दर्य था उनका
आतिथ्य के तो कहने क्या
कई बार किसी के अचानक आ जाने से जब हम बहने असहज हो जाती तब वो बड़ी ही कुशलता से घर में ही कई सामान जुटा नाश्ता और खाने का शाही सरंजाम कर देती
कई बार किसी के अचानक आ जाने से जब हम बहने असहज हो जाती तब वो बड़ी ही कुशलता से घर में ही कई सामान जुटा नाश्ता और खाने का शाही सरंजाम कर देती
हमेशा घर के बने नाश्ते को प्राथमिकता देती थी
कभी नाश्ता बाहर से नही आया
कभी नाश्ता बाहर से नही आया
और कोई द्वार से कभी भूखा नहीं गया ....
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पंछी ,गाय,कुत्ते सबके लिए उनके यहाँ दाना-पानी था तीज -त्योहार , सप्ताह के सातों दिन उनका सीधा
( पूजा का सामान ) निकलता
कुष्ठ आश्रम के लोग एक निश्चित समय पर आते और जो बन पड़ता ले जाते
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पंछी ,गाय,कुत्ते सबके लिए उनके यहाँ दाना-पानी था तीज -त्योहार , सप्ताह के सातों दिन उनका सीधा
( पूजा का सामान ) निकलता
कुष्ठ आश्रम के लोग एक निश्चित समय पर आते और जो बन पड़ता ले जाते
पडौस में किसी की कोई आवश्यकता अगर वो पूरी कर सकती तो अवश्य करती
वो तो बस निस्वार्थ सहायता करती
किसी भी सीमा तक जा कर
जो कई बार हम बच्चे पसंद नहीं करते थे और उन्हें रोकने का प्रयास करते ,टकराव भी हो जाता था
किसी भी सीमा तक जा कर
जो कई बार हम बच्चे पसंद नहीं करते थे और उन्हें रोकने का प्रयास करते ,टकराव भी हो जाता था
लेकिन वो कभी झुंझला कर और कभी चुप रह कर अपने मन की कर ही लेती थी
पिता पूरा सहयोग देते कई बार हम बच्चों को मना करते कहते मत रोको
करने दो
करने दो
दान-पुण्य भी हद से ज़्यादा होने पर पिता का यही कहना था
आस्था किसी तर्क का विषय नहीं है
और वे हमें शांत करा देते
कई बार ऐसे अवसर आये निराशा ने आ घेरा
लेकिन हर बार दुगने उत्साह से सामना किया
लेकिन हर बार दुगने उत्साह से सामना किया
कई बार समाज से टकराने की नौबत भी आई तो भी साहस से सामना किया .....
शायद कई बार टूटी भी !!
लेकिन किसी को आभास तक न होने दिया
शायद कई बार टूटी भी !!
लेकिन किसी को आभास तक न होने दिया
जिंदगी ने परीक्षा कदम-कदम पर ली
लेकिन वो जीवट महिला आगे बढती रही हर समस्या को झेलती रही
पति भी साथ छोड़ गए लेकिन उन्होंने अपने दायित्व बखूबी निर्वाह किये
लेकिन वो जीवट महिला आगे बढती रही हर समस्या को झेलती रही
पति भी साथ छोड़ गए लेकिन उन्होंने अपने दायित्व बखूबी निर्वाह किये
सभी दायित्व पूर्ण कर जब वो एकाकी रह गयीं तो हम बच्चों ने सोचा अब वो कुछ चैन से जी सकेंगी
अपने मन की कर पाएंगी ,लेकिन पता नहीं क्यों ..???.
जिंदगी भर जिंदगी से लोहा लेने वाली ये साहसी महिला एकांत नहीं झेल पायीं
और एक दिन बिना अपने मन की बात कहे वो अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ीं
उन्हें आभास था कि उनकी महायात्रा सावन माह में ही सम्भव है तो पूरे साल कहीं भी रहें वो सावन में अपने घर ही रहती थीं
आज श्रावण की त्रयोदशी थी , भोले का जलाभिषेक कर कृपापात्र बनने का दिन
ऐसे किसी भी अवसर पर उनकी आस्था चरम पर होती थी
लेकिन आज वो अपनी अंनत यात्रा पर निकल चुकी थीं
बच्चे जब तक पहुँचते वो कोमा में जा चुकी थी .
अपने मन की कर पाएंगी ,लेकिन पता नहीं क्यों ..???.
जिंदगी भर जिंदगी से लोहा लेने वाली ये साहसी महिला एकांत नहीं झेल पायीं
और एक दिन बिना अपने मन की बात कहे वो अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़ीं
उन्हें आभास था कि उनकी महायात्रा सावन माह में ही सम्भव है तो पूरे साल कहीं भी रहें वो सावन में अपने घर ही रहती थीं
आज श्रावण की त्रयोदशी थी , भोले का जलाभिषेक कर कृपापात्र बनने का दिन
ऐसे किसी भी अवसर पर उनकी आस्था चरम पर होती थी
लेकिन आज वो अपनी अंनत यात्रा पर निकल चुकी थीं
बच्चे जब तक पहुँचते वो कोमा में जा चुकी थी .
तीन दिन तक अस्पताल में रह कर अंतिम विदा ली
लोगो ने कहा पुण्य आत्मा
लोगो ने कहा पुण्य आत्मा
सच में वो पुण्य आत्मा थी
उस एकांत पीडिता महिला की अंतिम यात्रा में मानो आधा शहर उमड़ पड़ा था
दूर-दूर तक जनसमूह नज़र आ रहा था
आज हम बच्चे भी समझ रहे थे जिन बातों के लिए वो अक्सर उन्हें मना करते थे
उसी का प्रतिफल था ये
आज हम बच्चे भी समझ रहे थे जिन बातों के लिए वो अक्सर उन्हें मना करते थे
उसी का प्रतिफल था ये
ये उनकी जिंदगी भर की पूँजी थी
जाना ही था उन्हें ,आज नहीं तो कल
लेकिन दिल आज भी कचोटता है
काश!! हम समय पर पहुँच जाते ☹️☹️
क्या था उनके मन में जान पाते
काश!! हम समय पर पहुँच जाते ☹️☹️
क्या था उनके मन में जान पाते
याद उसे किया जाता है जिसे भूले हों
वो तो आज भी हैं हमारे मन में
सदैव रहेंगी 🙏🙏🙏🙏........
वो तो आज भी हैं हमारे मन में
सदैव रहेंगी 🙏🙏🙏🙏........