Saturday 15 October 2011



जनसत्ता के साथ हमारी याद


by अरुणा सक्सेना on Friday, May 27, 2011 at 7:37am
जनसत्ता में छपा मेरा अंतिम पत्र ...अब तो जनसत्ता की याद भर रह गयी हैं एक समय था जब जनसत्ता सर्वश्रेष्ठ समाचार पत्र था ओर हमारा खाना हज़म नहीं होता था पढ़े बिना.....लेकिन प्रभाष जोशी के साथ ही उसका आकर्षण भी चला गया
.एक चुनाव में जब इमरान खान(पकिस्तान) हार गया ,वो नौ जगह से खड़ा था औरसब जगह से हार गया तब हमारी आराधना बहनजी ने क्या कहा जनसत्ता के ज़रिये ....

कायस्थ समाज

१९४७ में विभाजन के बाद एक बार किसी ने मोहम्मद अली जिन्ना से पूछ कि 
आप अब भारत से अलग हो गए हैं ......
सबसे ज़्यादा क्या अखरेगा....?????
ऐसा क्या है जो वहां है यहाँ नहीं.....???......
.जिन्ना ने कहा ...एक बुद्धि  जीवी वर्ग ..कायस्थ , 
सबसे ज्यादा कायस्थों को ....याद करेंगे जो अब...हमारे देश में नहीं है...और ना ही अब होंगे .................

माँ

माता -पिता को याद करने के लिए हम किसी दिन के आधीन  नहीं हैं.
लेकिन मम्मा ..क्यों कि  आज का दिन सभी माताओ को समर्पित है ...
तो वो यादें जो कभी धुंधलाई भी नहीं ..
आज और मुखर हो गयी हैं
और इस रिश्ते को शब्दों  में नहीं समेट सकते     
सच हम सब बहुत याद करते है आपको 

माँ शब्द एक खूबसूरत, व्यक्तित्व की पहचान है  
माँ तुझ पर मुझे, बड़ा ही अभिमान है  
लिपटी थी आँचल में तेरे, अनुभव मीठे -मीठे घेरे  
क़र्ज़ है माँ दूध का तेरे , यादें दिल में करें बसेरे  
साया दुःख का कभी ना आया , दुःख का बादल कभी ना छाया  
जब तक साथ रहा माँ तेरा , दुःख को तुने दूर भगाया  
सर  पर  तेरे आँचल को माँ , आज भी मैंने अपने पाया  
तेरी ममता के आँचल में , एहसास सदा अनोखा पाया  
यादों में तू सदा रहेगी , कमी ये तेरी सदा खलेगी

पिताजी की बात



मेरे पिता कहा करते थे , कि जिंदगी गणित की तरह होती है |
 जिसमे आसान और कठिन समस्या ही समस्या होती हैं , 
लेकिन हल सबका होता है |
सिर्फ धीरज  के साथ  हल निकालो , जब कभी खुद हल न निकले तो दूसरे की मदद लो लेकिन  सफल होने की  कोशिश करो....
वो खुद भी बहुत शांत और सुलझे हुए व्यक्ति थे 
हमने उन्हें कभी भी आक्रामक और धर्य खोते हुए नहीं देखा 
परिस्थितियां कैसी भी हो , वो शांत रहते थे .
आज जब खुद को कहीं घिरा पाती हूँ तो उनकी ये आशावादी बात मुझे याद आती है पर कई बार हल नहीं  निकलता.
काश आप होते आज पिताजी !!!!!!!!!

काश आप होते आज पिताजी!!!!!!

बचपन




on Friday, April 1, 2011 at 7:31pm


हँसते- रोते , मुस्कान फैलाते  ,

मुक्त खिलखिलाहट बिखराते 

निष्कपट मन  से प्यार लुटाते , 

जिसका स्नेह पाते उसके हो जाते  

समाज की मानसिक संकीर्णता से दूर , 

पर समझ -बूझ से भर पूर  

जो मासूमियत और बचपन से भरपूर  

बाल क्रीडा फैलाते ,ये नन्हे बालक कहलाते 

जीवन के अति सुंदर क्षण  बाल्यावस्था  में ही बीत जाते  

काश  !!!!  हम सदा बच्चे ही रह पाते ,

काश  !!!!  हम सदा बच्चे ही रह पाते 

जो भी लिखा आपके सामने है मित्रों


भावनाओ के वेग से निकले हैं कुछ छंद 

विदित नहीं है हंसू या रोऊँ या मुस्काऊं मंद |

दिलो ,दिमाग पर 'जंग' लगा है पल -पल लड़ते 'जंग',


 महंगाई की मार पड़ी है स्वप्न हो रहे भंग |

घर में थोड़ा 'भात' पडा है पापी पेट का प्रश्न बड़ा है


 ,,कल की फिक्र से सुलगा चूल्हा 'यक्ष प्रशन' फिर भी खडा है |

चहुँ ओर काला पहरा है घोर निराशा ने घेरा है ,


आशा- निराशा की जंग में आशा का परचम फहरा है|

स्वप्नों ने लेकर अंगडाई मन में हलचल और बढाई ,

,
 रुख किया 'रण भूमि' का अब 'रण भेरी' दे रही सुनाई 

प्रतिबध्धता' है मेरी अब इन सपनो के संग

,
कोई 'उर्वशी' कितना भी चाहे करे तपस्या भंग

तम की चादर,




तम की चादर ओढ़ सांझ ने ,
धीरे-धीरे पाँव पसारा

आँख  मिचौली खेल ज़रा सी ,,
तम उर में छिप गया उजाला 


पलकों में सिमटे ख्वाबों ने , 
थोड़ी सी लेकर अंगड़ाई 


अभिनन्दन करके निद्रा का, 
सीमा  अपनी और बढाई


समां गए सपने अंखियों में, 
पलक लगे ढलके-ढलके


लोरी भी गा रही ख़ामोशी,, 
सहलाती हलके-हलके

एक सिक्के के दो पहलू





 Friday, April 8, 2011 at 5:26pm
जिंदगी-----

 एक गीत है जो बहुत दर्द भरा है 
 एक पथ है जो अंत हीन है 
 एक सेज है जो काँटों से भरी है 
 एक ख्वाब है जो पूरा नहीं होता  
एक फूल है जो निश्चित रूप से खिलता, मुरझाता और टूटता है.
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-जिंदगी ----
एक झील है जो खुशियों से भरी है.. 
प्रेरणा है , जो चलने को प्रेरित करती है 
एक एहसास है ,जो आनंद दायक है  
दुखों का अंत और 
शुभारम्भ है खुशियों का ....:):)

प्रकृति हमसे रूठ गयी है ..



जीवन ईश्वर का वरदान , हर श्वास है कर्ज़दार 
प्रकृति हमारी पालन हार  , क्यों ना माने उसका आभार 
प्रकृति ने मानव जाति को  अमृत  घूँट - घूँट दिया है 
 कृतज्ञ कोई नज़र ना आता कृतघ्नता से जुड़ा है नाता 
हरियाली को दूर भगा कर , कंक्रीट ने पौध लगाई .
शोक में डूबी हरियाली अब काले साए सी है घबराई 
पंछी कलरव की गयी बहार ,  पंछी नज़र ना आते द्ववार 
शुद्ध पवन की गयी बहार , उमस घुटन हर पल तैयार |
 टिम- टिम जुगनू नज़र ना आते , बचपन में थे बहुत वो भाते 
इन्द्र धनुष भी विलुप्त हो गया , प्रकृति के रंग संग  ले गया
इन्द्र देव क्रोधित हुए हैं ,  सावन भादों शुष्क हुए हैं 
मौसम समय पर नज़र चुराते , प्रकृति के तांडव में खो जाते |
क्या खोया ,क्या नहीं है पास ,  आज करे यदि ये एहसास 
अनमोल रत्न था प्यारा -प्यारा , प्रकृति का हंसता नज़ारा 

श्रधान्जली या आर्शीवाद





on Saturday, October 1, 2011 at 1:21pm



ये आशीर्वाद कभी मेरी बडी बहन की शादी के लिए लिखा गया था...मैने  ही ये शब्द लिखे १९८७ में 
लेकिन आज ये श्रधान्जली है उसके लिए.....
:(....missing u sis.....

शुरु हो रहा है नव जीवन,, आज पराए घर जाकर
स्म्रतियाँ सम्बल हैं यहाँ की ,,अपनाना उसको जाकर
शेष हो गए वो लघु क्षण  अब , बंधा था जिनका हमसे तार 
नाए क्षनो का  संग्रह करना,, इन्हे  बनाना    आधार
स्नेह मयी माता ही देंगी, तुमको अब वो लाढ़ दुलार .
प्यार के इस सागर  में पाना ,,तुम अपने जीवन का सार
हँस- मुख 'प्रमोद' के हास्य- व्यंग से ,तुम हो जाना ओत -प्रोत
अब तो वो घर ही है तेरे, सुखद भविष्य का सम्रध स्रोत
'पूनम' और 'श्री जय  प्रकाश जी'', वरद हस्त सिर पर रखते हैं 
ये पथ रहे सदा निष्कन्टक ,यही दुआ दिल से करते हैं
भाइ - बहन सब देते प्यार, व्यथित ह्रदय का सच्चा प्यार 
कामनाएं भी  कुछ दिल की हैं ,, सुख से भरा रहे सन्सार
शुभाशीष दे मात - पिता अब , विदा व्यथित हो कर करते हैं 
गृह लक्ष्मी बन मूल्य चुकाना ,, उन अश्कों का जो बहते हैं
दो कुल की ये कीर्ति पताका ,सदा ही उन्ची लहराए 
आज सौन्पते हाथ  तुम्हारे , विश्वास ना खण्डित हो पाए