Thursday 20 October 2011

आँखों में इन्द्र धनुष



चाय बना कर वृंदा ने गैस बंद की और कप लिए कमरे में आ गयी ,
दूध भी अपने उफान को अंजाम देने के लिए तैयार ही था पर वृंदा के मन में एक तूफ़ान था जो उसे बे-चैन किये था बाहर से आ रहे  तेज़ बारिश के  शोर ने बेचैनी और बढ़ा  दी ..
कुछ  भी अच्छा नहीं लग रहा था वृंदा को
-----------------------------------------------------------------------------
क्या करे ....!!! क्या होगा ..??? आज उनके एक गलत कदम ने उन्हें जिंदगी  के कई वर्ष पीछे धकेल दिया था ...काफी दिन के तनाव और उठा पटक के बाद वो दिन आगया  था जिस से वो बचना चाहते थे ...,अब कोई चारा भी नहीं था , कल उसके घर का पंजीकरण हो गया था आज अपने ही छोटे से घर में मालकिन से बेगानी चुकी थी ....एक पल को तो लगा था कोई बुरा सपना देख रही है , पर सब सच था ................
------------------------------------------------------------------
 ..........शेयर बाज़ार ने उसके पति को ऐसा जकड़ा कि  बार -बार की चेतावनी भी उन्हें चंगुल से बचा नहीं सकी और .. 
आज वो अपने नीड़ को  तिनका -तिनका होते देख रही थी .........बड़े ही कष्ट उठा कर   इस फ्लेट को   अपना कह पाए थे ज़्यादा दिन नहीं रही ये खशी और मुट्ठी से रेत की भांति फिसल गयी थी | ...आह ..!!! एक टीस उठी उसके दिल में .. आज संकट की इस घडी में उसे अपने माता- पिता  दोनों ही बहुत याद आ रहे थे ................................................
------------------------------------------------------------------------------- 
पिता तो कब के जा चुके थे , माँ को गए एक ही साल हुआ था ........ उनका संघर्ष  ! जो उन्होंने पग -पग पर किया था .... उसके लिए प्रेरणा था .!..चलचित्र की भांति ही सब घूम रहा था ..... 

वृंदा , अतीत का एक -एक पल .....जी लेना चाहती थी फिर से .,......
संकट की इस घडी में ये पल संबल बन गए थे ....... 

अचानक दरवाज़े पर दस्तक ने उसे वर्तमान में ला पटका ......... 
-------------------------------------------------------------------------------
बेटा अक्षित स्कूल से लौट आया था .. सर से पैर तक भीगा सामने खडा था .....जाओ कपडे बदल लो.....बैग हाथ से लेकर उसने निर्देश दिया और बाहर झांका बारिश अभी थी  .......... 
मम्मा क्या बनाया है ......??  रोज़ यही सवाल ......खाने में हमेशा एक नखरा जो वृंदा को बिलकुल पसंद नहीं पर कभी -कभी समझौता करती है आज उसका मन नहीं था बहस में पड़ने का तो बोली .....
तुम क्या खाओगे ..?????? आलू परांठा और नानाजी का नमकीन .......ठीक है ....बेटे के लिए ब्रंच बनाया प्रतीक्षित दूध को भी उबाल तक अंजाम दिया ... नाश्ता दे कर वही आ बैठी ........
बेटा रोज़ की ही भांति खाते -खाते अपने दिन भर का घटना क्रम सुना रहा था और वो अनमनी सी सुन रही थी ..  

वृंदा ने घडी पर नज़र दौड़ाई अभी अनुज को आने में समय था
बाहर झांका  बारिश रुक चुकी थी  सामने  थी  ईश्वर की एक  सुन्दर रचना  इन्द्रधनुष !!!....जिंदगी  भी बिलकुल इसी तरह होती है अनेक रंगों से भरी ......सोचा उसने ....... .....................
---------------------------------------------------------------

अतीत की परतें खुलती गयीं  .......मम्मा मुझे एन सी सी के कैम्प जाना है ...ठीक है सब तैयारी अच्छी तरह करना , मम्मा मुझे आज देर हो जायेगी .....अच्छा आज .खाना लेकर जाओ .........ना जाने ऐसी ही कितनी घटनाएं ...........मम्मा आज हमारे स्कूल में मेला लगा है .....मम्मी आज रामलीला चलें ...ना जाने कितनी  ही यादें ??????........... .........................
------------------------------------------------------------
एक बड़े परिवार के  दायित्व निभाते हुए मध्यम वर्ग की ज़िंदा दिल और  साहसी महिला थीं वो ........
पांच  बेटियां , बूढी बीमार  सास और पति सुबह से शाम तक असीमित कार्य थे .......बावजूद इसके वो अपनी रुचियों को बरकरार रखे थीं ,पढ़ना ..सिलाई बुनाई , संगीत .....उनकी जिंदगी की रीढ़ थे ...अपने दायित्वों में उन्होंने अपनी रुचियों को खोने नहीं दिया .........मोहल्ले में होने वाली सभी महिला संगीत क़ी जान थीं वो .......
उनकी थाप के बिना लय ही नहीं बनती थी ............

ईश्वर ने गज़ब सौन्दर्य दिया था ....साधारण साड़ियों में भी वो आकर्षण बनाए रहती थी ,,....सजते -संवरते कभी  नहीं देखा था ,शौक नहीं था या परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया कभी समझ नहीं पायी वृंदा .............कभी वृंदा को लगता कि अभावों के चलते उन्होंने अपनी इच्छाओं का दमन किया था .......
------------------------------------------------------------
पांच बेटियों के पिता होते हुए भी पापा और मम्मा हमेशा खुश और संतुष्ट नज़र आते ...अपनी बेटियो के साथ बड़े ही खुश नुमा  माहौल में जीवन बिता दिया रहे थे ....दादी को कई बार अपने इकलौते बेटे के बेटे को देखने की उत्कंठा होती ....और वृंदा को लगता है कि शायद यही कारण रहा होगा कि माँ ने हम कई बहनों को जन्म दिया ...........बहुत शांत , सुलझे और सोच- समझ के साथ निर्णय लेने वाले उसके पिता बेटियों के बहुत करीब थे 
ऐसे पिता और बहुमुखी प्रतिभा  की धनी माँ ने अपनी बेटियों  को भरपूर स्नेह और विश्वास दिया था .....अभाव भी रहे , तंगहाली भी झेली ......  पिता अपनी नौकरी में राजनीति के शिकार हो गए  और नौकरी गँवा बैठे थे  बड़ा परिवार था पर पिता और माँ हमेशा समय से संघर्ष करते नज़र आते थे ......... ........------------------------------------------------
मम्मा , पापा आ गए .....अक्षित की आवाज़ ने तन्द्रा भंग कर दी ......वह चौंक कर उठी ...."सुनो एक शादी में जाना है , अभी निकलना है खाना नहीं खाउंगा , जाना ज़रूरी है वरना मन नहीं है मेरा बिलकुल भी जाने का ,  अनुज अन्दर आते हुए बोले ....

 जिंदगी किसी के लिए नहीं रूकती तुम्हे जाना ही चाहिए ...
वृंदा ने कुछ सोच कर कहा
जानती थी अनुज भी इतनी बड़ी घटना के बाद अच्छा  महसूस नहीं कर रहे हैं ..... वृंदा को बड़ी राहत मिली ...खाना बनाने के झंझट से बच गयी थी वो  आज सिर्फ अपनी यादों में खो जाना चाहती थी ...........

अनुज देर से आने को कह ,जल्द ही निकल गए ... 
----------------------------------------------------------------
और आज वृंदा सब कुछ भूल अपने बचपन से लेकर युवा होने तक का समय फिर से यादों में जी लेना चाहती थी ......... ...
समझदार होने पर वो कायल हो गयी थी माता -पिता की....!!!! 

अचानक अतीत का एक पन्ना पलटा और पिता अस्पताल में नज़र आये वृंदा और ऋतु अभी पढ़ रही थीं बाकी तीन  बहने शादी के बाद अपनी - अपनी गृहस्थी  में व्यस्त थीं ......उन दिनों बहुत संवेदनशील और भावुक माँ किसी चट्टान  की तरह नज़र आयीं ........
जब कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था ..माँ ने आगे बढ कर पिता को मेडिकल में भरती कराने का फैसला कर डाला था ....सबको लग रहा था कुछ नहीं होना वाला है पर माँ के निर्णय को सभी ने सम्मान दिया था ...... तीन दिन के कुछ असहनीय और कठिन पलों के बाद जिंदगी ने निर्णायक मोड़ ले लिया  और पिता असमय ही  अनंत यात्रा पर निकल पड़े  ........ 
------------------------------------------------------------------
सब कुछ बिखर गया ..... माँ के पास कुल जमा पूँजी  थी  थोड़ा सा पैसा ,एक घर ,  दो बेटियाँ  ..लेकिन अभी बेटियों की पढ़ाई के साथ -साथ अनेक समस्याएँ मुह बाए सामने थीं .....लेकिन माँ ने खामोशी ओढ़ ली और अपने दायित्व निर्वाह में लग गयीं 

माँ ने सब कुछ बड़ी ही खामोशी से संभाल लिया था ...एक अनकहा समझौता वृंदा , ऋतु और माँ के बीच हो गया था ...जिंदगी धीरे -धीरे चल निकली थी ..........समस्याओं से जूझते हुए  तीनो कदम से कदम मिलाकर साथ चल रहे थे ..समय पंख लगा कर उड़ता रहा  आज वृंदा और ऋतु भी अपनी -अपनी गृहस्थी की एक छत्र साम्राज्ञी थी ........
---------------------------------------------------------------------------------.
अब  !! जब सब ठीक हो चला था  ...और दुःख के बादल छंट चले थे एक समस्या सबको नज़र आ रही थी .........अब माँ की सबसे बड़ी समस्या थी  एकाकीपन ,हालांकि उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं कहा पर वृंदा और सभी बहने इस को समझ रहे थे ........................
आठ भाई बहनों के साथ पल कर बड़ी हुई माँ का सारा जीवन एक भरे -पूरे संसार में ही बीता जिस समय से वो हमेशा लोहा  लेती रहीं ......आज उसी समय ने उन्हें तोड़  दिया था ..............

जो माँ रसोई से कभी अवकाश नहीं पाती थी अपने लिए दो फुल्के सेकने से भी कतराने लगीं ........कभी -कभी बेटियों के पास जाती थीं हर कोई चाहता था ...वो हमारे पास रहें पर माँ का संस्कारी मन इसके लिए तैयार नहीं होता समझाने बुझाने से भी वो तैयार ना होती थी ...कुछ दिन बाद वो हमेशा अपना सामान समेट लेतीं ......उनकी इच्छा सबके लिए सर्वोपरि थी .....सब उनकी इच्छानुसार  करते .........यही सिलसिला चल रहा था ......
..... इसी एकाकीपन के साथ उन्होंने संसार से विदा ली तो मानो पहाड़ टूट पडा था वृंदा को आज भी याद है वो रात ..............सभी बहने गले लग खूब रोयीं थीं ......... 
-----------------------------------------------------------------------
उनके जाने के बाद एक रिक्तता आ गयी थी ......
घर जो पिता ने परिश्रम से निर्मित किया , माँ ने परिवार के साथ मिल भावनाओं से सिंचित किया .....आज चार दीवारों के साथ मकान नज़र  आ रहा था ...घर की हर चीज़ अपनी जगह पर थी ...दीवारें सूनी  थीं 

हर चीज़ खरीदने के पीछे की कहानी बरबस याद आ जाती, सबके साथ अनेक रोचक और नोक -झोंक भरे ढेरों  क़िस्से थे ...जो चलचित्र की भांति मस्तिष्क पर छाए थे ..... ..............
-------------------------------------------------------------------.
अपने जीवन के एक बुरे दौर से गुज़रती वृंदा अतीत की गठरी खोल रही थी आंसू बह रहे थे अचानक गालों पर स्पर्श पा यादों से लौट आई ...
----------------------------------------------------------------------------------
बेटा आंसू पोंछ रहा था ...
बस अब हर सपना इसकी आँखों से देख रही थी  वृंदा 
क्या हुआ माँ ???  नानी की याद आ रही है ..या ...????
उसने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया .. माँ में हूँ ना चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा , सब कुछ समझने लगा था अक्षित ..बड़ा हो रहा था वो , बोलता नहीं था पर वृंदा जानती थी , सब कुछ उसके मन में है ........  ...... 

वृंदा ने बेटे की आँखों में झांका वहां भी एक नन्हा इन्द्र धनुष नज़र  आ रहा था शायद आसमान से उतर कर उन  आँखों में समा गया था .. या सबके पास अपना -अपना इन्द्र धनुष होता है समझ नहीं पायी वृंदा ......????????????
वृंदा ने उसके  दोंनो हाथ थाम लिए इस   मज़बूत संबल में नन्हा सा इन्द्र धनुष  अपने सातों रंग  के साथ था  , वृंदा ने सोचा ये रंग कभी आँखों से उतर कर उसके सपनों में रंग ज़रूर भरेंगे ......... वृंदा ने  बड़े ही विश्वास के साथ मुस्करा कर बेटे को प्यार कर लिया .....................उसकी आँखों में अभी भी इन्द्र धनुष चमक रहा था .............
-------------------------------------------------------------------------