Tuesday 17 March 2020

लघु रामायण

आओ आओ एक बात बताएं , बहुत पुरानी  कथा सुनाएँ
त्रेता युग की है कहानी , नहीं किसी से है अनजानी



नदी एक सरयू थी बहती , दुःख-सुख अवध नगर के कहती
नगर अयोध्या थी  खुशहाल , पा दशरथ को थी निहाल
माता तीन पिता थे एक , उत्तराधिकार का था मतभेद




कैकई का क्रोधी अंदाज़ , राम नहीं हो भरत को राज 
राजा हारे रानी जीती , वचनबद्धता  प्रीत से जीती 
राम-लखन और पत्नी सीता , चले निभाने रघुकुल रीता
चित्रकूट और पंचवटी , यहीं रहे और बनी कुटी
१४ वर्ष का समय बहुत था , आशीर्वाद सभी का संग था
पिता चल दिए पुत्र वियोग में ,अयोध्या पूरी डूबी शोक में
अवध के घटना क्रम से अनजान, मातुल घर थे भरत महान
घटना जान हो गए आहत , सिंहासन की नहीं थी चाहत

भरत चले भ्राता को लाने ,संग अयोध्या चली मनाने
भरत पादुका ही ला पाए , वचन भाई का तोड़ न पाए
समय हो रहा था व्यतीत , १४ वर्ष गए थे बीत
  सौष्ठव राम-लखन का भाया , 
विवाह प्रस्ताव सूपर्णखां  का आया
सहमत नहीं हुए जब भाई , 
सूपर्णखा की दिखी सच्चाई
नासिका विहीन बनी निशिचरी
वार सिया पर नहीं सह पाए
क्रोधित लक्ष्मण रुक  नहीं पाए
सूपर्णखाँ ने  व्यथा सुनाई बदला लेने पहुंचे भाई
सबको मौत घाट उतारा , तुरंत सभी का किया निपटारा
मोहित स्वर्ण मृग पर सीता , बुद्धि विनाश काल विपरीता
राम चले लाने मृग छाला  , लखन सिया का था रखवाला
करूं पुकार दी  एक सुनाई , राम पुकारे लक्ष्मण भाई
सुन पुकार सीता घबराई , रेखा खींच चल दिए भाई
साधू वेश में रावण आया , भिक्षा मांगी द्वार बजाया
सीता का फिर हरण कर  लिया , वायु मार्ग से लंका चल दिया
गिद्ध जटायु बचाने आया , रावण ने उसको मार गिराया
राम भटकते सीता की खोज में , जटायु मिल गया थोड़ा था होश में
पानी पिया वृतान्त सुनाया , और जाने का मार्ग  दिखाया
राम को मिला संग वानर का , लंका पर कर  दी चढ़ाई
भीषण युद्ध हुआ उस युग में, चिन्ह आज तक पड़ें दिखाई
अंत हुआ रावण का और सीता से मिले रघुराई
लंका  राज विभीषण को दे राम को याद आया घर-बार
लखन सिया हनुमान चले पुष्पक विमान से अयोध्या द्वार
अभिनन्दन करने राम का उमड़-उमड़ अयोध्या आयी
खूब नगाड़े बजे नगर में अपार हर्ष और खुशियां छायी
घी के दीप जले घर-घर में ,हर द्वारे थी दीप कतार
छोटे-बड़े सभी जन खुश थे दीपावली की थी बहार
प्रथा चल पड़ी दीवाली की , हर्षोल्लास और खुशहाली  की
हर वर्ष  उल्लास  से दीप जलाएं , दीपोत्सव जम कर मनाएं