Sunday 19 May 2013

सूरज दादा

सूरज दादा बड़ी अकड़ में रोज़ सवेरे आते हैं
मस्तक उंचा करे गर्व से अभिमानी बन जाते हैं

धूप चमकती खिली रुपहली तपती धरा खूब पथरीली
बहे पसीना बार -बार और त्वचा लग रही गीली -गीली

लू ने भी है धूम मचाई थप्पड़ मारे ले अंगडाई
इधर -उधर कीगरम हवा ने बेचैनी है और बढाई

ठंडा सतुआ मन को भाये , लस्सी ,शरबत के दिन आये
पल -पल सूख रहे हलक में शीतलता तरावट लाये

बेल का शरबत राहत देगा, अपच पेट का ठीक करेगा
लथपथ हुए पसीने से जन , विद्युत् विभाग कर रहा हरि भजन

मेहनतकश भी हुए हलकान , करते हैं महसूस थकान
सूरज दादा करो तपन कम ,हाथ जोड़ करे विनती हम