१-शीतल और सुगन्धित चन्दन
मस्तक का करता अभिनन्दन
२-चौक चौराहे मचा धमाल
उड़ा अबीर साथ गुलाल
३-पीत परिधान फसल ने पहना
झिलमिला रहा है कृषक पसीना
४-होली के रंग छटा बिखराए
सराबोर तन -मन हो जाए
५-पिचकारी ने मान बढ़ाया
टेसू पानी संग इतराया
--जिंदगी में क्या नहीं है ? समझो सब कुछ यहीं- कहीं है धूप -छाँव है , हँसी -ख़ुशी है , सुख है ,दुःख है कुछ नहीं कम , सब कुछ एक साज़ पर बजता एक ही है इसकी सरगम...!!! अपनी अकुलाहट , छटपटाहट सब कुछ इन शब्दों में सहेजने का प्रयास करती हूँ मन को शांत करने का , एक -दूसरे के मन में झाँकने का , अपने ही विचारों को उकेर कर सामने लिखा देखने का एक बहुत सुंदर माध्यम है ........... कई बार शब्द साथ नहीं देते लेकिन अक्सर कुछ न कुछ शब्दों के माध्यम से बाहर आता रहता है ............
बहुत खूब! अभी से होली का सुंदर तंग जमा दिया...
ReplyDeleteआपकी होली में [ कविता में ] सचमुच में ऊष्मा और शीतलता का संगम प्रतीत हो रहा ...
ReplyDeleteaapki kavita men sheetalta aur rishton kii uushnta prateet ho rahi .......
ReplyDeleteआपकी कविता में शीतलता और किसान की मेहनत की उर्जा का परिणाम अच्छा लगा ...
ReplyDeleteकैलाश जी और प्रतिभा आपका हार्दिक आभार .......
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