मुड़ कर देख हमें भी लेना
हम तो अब भी वहीँ खड़े हैं
१-वही नीम है वही चौराहा
वही बना विछोह गवाह
उसी कुए की चौड़ी मुंडेर पर
राह तकते हुए खड़े हैं
२-बंधन था जो मन से अपना
साथ -साथ देखा था सपना
बिखरे टूट गए सपनो की
छोटी किरचों बीच खड़े हैं
३-बचपन की वो मधुर स्म्रतियां
यहीं भरी थी स्वप्न उड़ान
खँडहर घरोंदा याद दिलाता
यहीं हमारी गहन जड़ें हैं
४-आवागमन बसन्त-पतझड़ का
ग्रीष्म-शीत का आना जाना
बिना आकलन रहे झेलते
क्रूर समय का हर प्रहार
डोरी का वो एक सिरा हम
अब भी पकडे हुए खड़े हैं .......!!!!
हम तो अब भी वहीँ खड़े हैं
१-वही नीम है वही चौराहा
वही बना विछोह गवाह
उसी कुए की चौड़ी मुंडेर पर
राह तकते हुए खड़े हैं
२-बंधन था जो मन से अपना
साथ -साथ देखा था सपना
बिखरे टूट गए सपनो की
छोटी किरचों बीच खड़े हैं
३-बचपन की वो मधुर स्म्रतियां
यहीं भरी थी स्वप्न उड़ान
खँडहर घरोंदा याद दिलाता
यहीं हमारी गहन जड़ें हैं
४-आवागमन बसन्त-पतझड़ का
ग्रीष्म-शीत का आना जाना
बिना आकलन रहे झेलते
क्रूर समय का हर प्रहार
डोरी का वो एक सिरा हम
अब भी पकडे हुए खड़े हैं .......!!!!
कितना कठिन होता है ...माँ ...पिता ..के बारे मे लिखना .....सच्च ....ऐसा ही तो होता है ...हम सभी के जीवन मे ...छोटी छोटी बातों को महत्व देते हुए ...माँ ..पिता की पूरा जीवन संवार देते हैं .....और हमारे पास .....क्या है ...आदर पूर्वक उन्हे दो शब्द कह सकें .......प्रणाम ...तुम्हे बारम्बार प्रणाम ..
ReplyDeleteसादर आभार मंजू जी
ReplyDeleteअति सुंदर अभिव्यक्ति......
ReplyDeleteधन्यवाद शैल
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