--जिंदगी में क्या नहीं है ? समझो सब कुछ यहीं- कहीं है धूप -छाँव है , हँसी -ख़ुशी है , सुख है ,दुःख है कुछ नहीं कम , सब कुछ एक साज़ पर बजता एक ही है इसकी सरगम...!!! अपनी अकुलाहट , छटपटाहट सब कुछ इन शब्दों में सहेजने का प्रयास करती हूँ मन को शांत करने का , एक -दूसरे के मन में झाँकने का , अपने ही विचारों को उकेर कर सामने लिखा देखने का एक बहुत सुंदर माध्यम है ........... कई बार शब्द साथ नहीं देते लेकिन अक्सर कुछ न कुछ शब्दों के माध्यम से बाहर आता रहता है ............
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दीपक
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Thursday 23 October 2014
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शुभ दीपावली!
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