Thursday, 4 June 2020

हाँ ऐसी ही थीं माँ

---हाँ ऐसी ही थी ' माँ '...

. बात करें ४0से ५0 के दशक की तो बात कुछ ओर थी ...

उन दिनों पुरुष और महिलाओं के लिए अलग घरों में भी सीमाएं थी 

लडकियां दुपट्टा सर पर अवश्य रखती थी ...स्कूल गयीं ओर फिर घर ...पास -पडौस के सामाजिक कार्यों में अवश्य शामिल होती ......


कीर्तन , गीत -संगीत ....इसके अलावा अनावश्यक घूमना तो बेहद बुरा समझा जाता .........सबके लिए एक लक्ष्मण रेखा थी और सबको पालन करना होता था ....अनिच्छा का भी कोई प्रश्न नहीं था .......समय ही ऐसा था ...सब इच्छा से ही होता था .........

कहानी है एक लड़की की .......' माँ 'की ...!!!!!!!

आठ भाई -बहनों का भरा--पूरा खुशहाल एवं संपन्न परिवार ........तीन भाई और एक बहन से छोटी पांचवें  नंबर की संतान  बेहद  खूबसूरत , तीखा नाक -नक्श , गोरा रंग ....प्रतिभा शाली .!!!...........कंठ में सरस्वती का वास ...........वाद्य यन्त्र ..जैसे  हारमोनियम , तबला , ढोलक में पारंगत ...नृत्य के क्या कहने ..........

पाक कला में भी निपुण ....

ये कोई अतिश्योक्ति नहीं ......सत्य वचन .

ईश्वर ने सब दिया था पढने का भी बड़ा शौक था ......बड़ी बहन की शादी के बाद माता की सेहत ठीक ना रहने के कारण.पढ़ाई रोक दी गयी थी उस समय ये कोई नई बात नहीं थी , बड़ा आम था सब कुछ........

घर पर ही रह कर पढने कहा गया ..........

मन तो नहीं था लेकिन विरोध नहीं कर सकती थी,वो समय ही और था .........

कक्षा आठ तक घर पर रह  कर पढ़ाई की लेकिन जूनून ऐसा था .

.भाई -बहन सबकी किताबों का एक -एक अक्षर चट कर जाती, चाहे कोई भी विषय हो .....

फिर समय बीता .....

कुछ समय बाद एक सरकारी अफसर के साथ शादी हुई जो स्वयं पुस्तकों के शौक़ीन थे .........

ईश्वर का शुक्रिया किया कि चलो साथ मिला तो एक 

बुद्धिजीवी का !!......इसी पढने के शौक ने ज्ञान भी बढाया .......

नयी जानकारी दी ....


अपनी संतानों को भी यही सब विरासत में दिया .......जिस बात के लिए बच्चे बहस करते या परेशान होते उसे बड़ी ही सहजता से बता देती किसी शब्द का अर्थ हो या किसी व्यक्ति विशेष की जानकारी लेनी हो उनके लिए बाएं हाथ का काम था .........

कक्षा दस भी पास नहीं कर पायीं थी लेकिन पढने की ललक ने ज्ञान अर्जित कर ही लिया था ........

अच्छा साहित्य ,अच्छी पुस्तक यही साथी बने रहे .....और ..बच्चों के दोस्त आश्चर्य व्यक्त करते .....

.'तेरी मम्मी ने बताया अच्छा' ...!!!!....

बनाव-श्रंगार से भी कोई लगाव नही था बेहद साधारण और सौम्य थीं वो 

कोई  भी अवसर  होता  तो  सिर्फ  अपनी सिल्क  की क्रीम    कलर   की साडी  और हार  पहन  लेती ......अब  उस छवि  का क्या  वर्णन  करूँ  में ....

एक दम नैसर्गिक  सौन्दर्य था उनका ........

आथित्य के तो कहने क्या ....कई बार किसी के अचानक आ जाने से जब हम बहने  असहज हो  जाती  तब वो  बड़ी  ही  कुशलता  से घर  में   ही   कई सामान जुटा नाश्ता  और  खाने  का  शाही  सरंजाम  कर  देती  

हमेशा  घर  के बने  नाश्ते  को प्राथमिकता देती  थी 

कभी नाश्ता बाहर से नही आया 

कोई द्वार से कभी भूखा नहीं गया ....

.

पंछी ,..गाय, ..कुत्ते ....सबके लिए उनके यहाँ दाना -पानी था ......तीज -त्योहार , सप्ताह के सातों दिन उनका सीधा ( पूजा का सामान ) निकलता ........

कुष्ठ आश्रम के लोग एक निश्चित समय पर आते और जो बन पड़ता ले जाते

...........पडौस में किसी की कोई आवश्यकता अगर वो पूरी कर सकती तो अवश्य करती .....

वो तो बस निस्वार्थ सहायता करती .....किसी भी सीमा तक जा कर ...जो कई बार हम बच्चे पसंद नहीं करते था और उन्हें रोकने का प्रयास करते 

लेकिन वो कभी झुंझला कर और  कभी चुप रह कर अपने मन की कर ही लेती थी 

.पिता पूरा सहयोग देते कई बार हम बच्चों को मना करते ...कहते मत रोको ....करने दो .....

.दान -पुण्य भी हद से ज़्यादा होने पर पिता का यही कहना था  .....

आस्था किसी तर्क का विषय नहीं है ...

और वे हमें शांत करा देते

कई बार ऐसे अवसर आये निराशा ने आ घेरा ...लेकिन हर बार दुगने उत्साह से सामना किया 

कई बार समाज से टकराने की नौबत भी आई तो भी साहस से सामना किया .....

शायद कई बार टूटी भी !! लेकिन किसी को एहसास तक न होने दिया ...........

.....जिंदगी ने परीक्षा  कदम -कदम पर ली .....लेकिन वो जीवट महिला आगे बढती रही हर समस्या को झेलती रही ...........पति भी  साथ छोड़ गए लेकिन उसने अपने दायित्व बखूबी निर्वाह किये 

सभी दायित्व पूर्ण कर जब वो एकाकी रह गयीं तो हम बच्चों ने सोचा अब वो कुछ चैन से जी सकेंगी 

अपने मन की कर पाएंगी .लेकिन पता नहीं क्यों ..???.

जिंदगी भर जिंदगी से लोहा लेने वाली ये साहसी महिला एकांत नहीं झेल पायीं ....और एक दिन बिना मन की बात कहे इस संसार से चल निकली 

बच्चे जब तक पहुँचते  वो कोमा में जा चुकी थी .

तीन दिन तक अस्पताल में रह कर अंतिम विदा ली

 लोगो ने कहा  पुण्य आत्मा

सच में वो  पुण्य आत्मा थी 

आज वो इस दिन अपनी अनंत  यात्रा पर निकल पड़ी थी 

उस एकांत पीडिता महिला की अंतिम यात्रा में मानो आधा शहर उमड़ पड़ा था 

लोगो का सैलाब नज़र आ रहा था ...

आज हम बच्चे भी समझ रहे थे जिन बातों के लिए वो अक्सर उन्हें मना करते थे ...उसी का प्रतिफल था ये 

.ये उनकी जिंदगी भर की पूँजी थी ...

..जाना ही था उन्हें ,आज नहीं तो कल ........

लेकिन दिल आज भी कचोटता है .........

काश!! हम समय पर पहुँच जाते .!

.क्या था उनके मन में जान पाते ...

याद उसे किया जाता है जिसे भूले हों ......

वो तो आज भी हैं हमारे मन में ..

सदैव रहेंगी 🙏🙏🙏🙏........



1 comment:

  1. बहुत मार्मिक।
    बहुत सुन्दर।
    पर्यावरण दिवस की बधाई हो।

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