नन्ही -नन्ही बूंदों ने जब अपना राग सुनाया
व्याकुल किसान की व्याकुलता को ,हुलसाया -हर्षाया !
हल--बैलों की जुगल बंदी संग, धरती ने ली तान
झम -झमा झम , झम--झम ,झम--झम बरखा गाये गान !
हल चलाते कृषक अधरों पर ,खेल रही मुस्कान
भूल गया वो ताप , पसीना , सूरज का अभिमान !
लहलहाती फसल करेगी जब ,अभिनन्दन ,सम्मान
बीज -धरा का मिलन रखेगा ,परिश्रमी किसान का मान .
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को "सयानी सियासत" (चर्चा अंक-3756) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteNice article, good information and write about more articles about it.
ReplyDeleteKeep it up
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